छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ आयोग का विधानसभा चुनाव की ओर पहला कदम 180 करोड़ के सरकारी खर्च का प्रस्ताव

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छत्तीसगढ़ में पिछले विधानसभा चुनाव की अधिसूचना 6 अक्टूबर 2018 को जारी हुई थी, इसलिए 2023 के विधानसभा चुनाव में अक्टूबर से दिसंबर के बीच हो जाएंगे। इसके लिए तकरीबन 11 महीने बचे होने को ध्यान में रखते हुए छत्तीसगढ़ के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी ने विधानसभा चुनाव में होने वाले सरकारी खर्च का प्रस्ताव तैयार कर लिया है। यह प्रस्ताव करीब 180 करोड़ रुपए के खर्च का है। हर विधानसभा क्षेत्र पर चुनाव मैनेजमेंट का सरकारी खर्चा 2 से 2.5 करोड़ रुपए आंका गया है।

बजट प्रस्ताव में आयोग को चुनाव संपन्न करवाने में होने वाले हर खर्च को रखा गया है। दरअसल, संवैधानिक व्यवस्था के अनुरुप प्रदेश में होने वाले विधानसभा और स्थानीय निकाय चुनाव का खर्च राज्य सरकार ही वहन करती है। केंद्र सरकार की ओर से लोकसभा चुनाव का खर्च वहन किया जाता है। उपचुनाव का खर्च की क्रमश: इसी तरह उठाया जाता है।

अगले साल राज्य में 90 विधानसभा सीटों पर चुनाव होने हैं। लिहाजा इसके लिए बजट का प्रस्ताव बनाया गया है। हाल में इस पर विधि विधायी विभाग की ओर से शासन से चर्चा की गई है। चूंकि अगले साल चुनाव है, इसलिए भी इस साल विभागों के साथ बजट की तैयारियों के लिए हुई चर्चाओं में विधानसभा चुनाव में होने वाले खर्च को शामिल किया जा सकता है।

  • प्रदेश विधानसभा चुनाव:2023 के लिए आयोग का बजट प्रस्ताव तैयार
  • विधानसभा और स्थानीय निकाय चुनाव का खर्च उठाती है सरकार

सरकारी खर्च भी बढ़ा- 2013 में प्रदेश विधानसभा चुनाव 70 करोड़ में हुए थे, 2018 में 176 करोड़ रु. हो गए खर्च
छत्तीसगढ़ में प्रदेश में 2013 में हुए विधानसभा चुनाव में 70 करोड़ रुपए खर्च हुआ था। इसके लिए 2012 में नवंबर में बजट प्रस्ताव बनाया गया था। जबकि 2018 के चुनाव में हाईटेक बंदोबस्त और तकनीकी रूप से एडवांस प्रक्रिया के चलते चुनाव में 176 करोड़ रुपए खर्च हुए थे। इतना ही नहीं, 2018 में विधानसभा चुनाव में बेहतर वित्तीय प्रबंधन के लिए छत्तीसगढ़ राज्य को पुरस्कार भी मिला था। 2018 के बाद 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में करीब 100 करोड़ रुपए का खर्च आया था।

कर्मचारियों-सुरक्षाबलों के मानदेय से लेकर टेंट-वीडियोग्राफी का खर्च भी
मतदाता सूची के रिवीजन के साथ आयोग काम शुरू करता है। इस साल जनवरी के बाद मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी कार्यालय ने बजट प्रस्ताव पर काम शुरू कर दिया था। विधानसभा चुनाव के बजट प्रस्ताव में खर्च के 44 मुख्य मद (हैड्स) हैं, जिनमें कर्मचारियों और सुरक्षाबलों का मानदेय, पोलिंग पार्टी को केंद्र तक पहुंचाने की व्यवस्था, ट्रेनिंग, स्टेशनरी आदि शामिल है। वहीं, करीब 116 विविध तरह की खर्च जैसे कर्मचारियों का मुआवजा, अन्य खर्चों आदि की अनुमानित राशि तय होती है। इसमें टेंट, लाइट, गाड़ियों और वीडियोग्राफी, सीसीटीवी, स्टेशनरी और मतदान कर्मियों को दी जाने वाली मतदान सामग्री का खर्च शामिल रहता है।

ईवीएम-वीवीपैट को लाने और ले जाने का खर्च भी उठाता है राज्य शासन
चुनाव करवाने के लिए ईवीएम-वीवीपैट मशीन चुनाव आयोग की ओर से मुहैया करवाई जाती है। लेकिन हैदराबाद-बेंगलुरू या निर्धारित राज्य से इसकी ट्रांसपोर्टिंग का खर्च चुनाव करवाने राज्य को ही उठाना पड़ता है। मशीनों में लगने वाले अतिरिक्त अटैचमेंट जैसे बैटरी और दूसरे सामान का खर्च भी चुनाव करवाने वाले राज्य को देना होता है। दिलचस्प बात यह है कि 2013 के विधानसभा चुनाव और 2014 लोकसभा चुनाव में जिलों से 7 करोड़ रुपए से ज्यादा का पंडाल-टेंट का बिल एक्सट्रा खर्च के रूप में सामने आया था। 2018 के चुनाव में इनको क्लियर किया गया था। वहीं 2019 में लोकसभा चुनाव से पहले 2018 विधानसभा चुनाव के सारे बिल क्लियर किए गए थे।

आयोग की तैयारी काफी पहले से ही
छत्तीसगढ़ विधानसभा के पूर्व प्रमुख सचिव तथा संविधान विशेषज्ञ देर्वेद्र वर्मा ने बताया कि चुनाव के बजट प्रस्ताव के लिए आयोग की ओर से काफी पहले तैयारियां शुरू कर दी जाती हैं। विधि विधायी विभाग के जरिए प्रस्ताव भेजा जाता है। इसमें चुनाव में होने वाले हर तरह के खर्च का अनुमानित प्रस्ताव दिया जाता है। चुनाव के दौरान अतिरिक्त खर्च होता है, तो उसे बाद में समायोजित किया जाता है।