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कंचनजंगा ट्रेन हादसा मानवीय भूल या तकनीकी चूक? सामने निकलकर आई ये वजह

सोमवार को पश्चिम बंगाल के रंगापानी रेलवे स्टेशन के पास हुई दुर्घटना के 24 घंटे बीत गए,हर स्तर पर इसकी जांच जारी है. आखिरकार यह दुर्घटना हुई कैसे? इस बाबत दिल्ली में रेल मंत्रालय से लेकर पश्चिम बंगाल तक बैठकों का दौर जारी है.

रेलवे विभाग यात्रियों की सुरक्षा प्रथम के सिद्धांत पर काम करता है. लेकिन वह कौन सी मानवीय अथवा तकनीकी चूक थी जिसके चलते इतनी बड़ी घटना हुई? इन सवालों पर मंथन जारी है. लेकिन अब तक की तहकीकात में धीरे-धीरे कई अहम जानकारियां आने लगी हैं.

रेल मंत्रालय से मिली जानकारी के मुताबिक इस रूट पर सुबह 5.50 बजे से ही ऑटोमेटिक सिग्नल सिस्सट खराब था. अब सवाल ये उठता है कि यदि ऑटोमेटिक सिग्नल सिस्टम खराब था तो ट्रेनों का कैसे परिचालन हो रहा था? ट्रेन मैनुअल के मुताबिक यदि ऑटोमेटिक सिग्नल सिस्टम खराब हो जाता है तो मैनुअली इस सिस्टम को ऑपरेट किया जाता है. और इसकेलिए टीए जारी किया जाता है.

टेशन मास्टर ने दिया था निर्देश

पश्चिम बंगाल की घटना में भी ऐसा ही देख गया. रंगापानी रेलवे स्टेशन के स्टेशन मास्टर ने T/A 912 यानी To pass traffic the defective signal in को जारी किया था. मतलब ये कि ऑटोमेटिक सिग्नल सिस्टम खराब है और चालक को मैनुअल सिस्टम के तहत ही गाड़ी चलानी है. इस निर्देश के तहत 10 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से ट्रेन को चलाना होता है.

रेलवे सूत्रों के मुताबिक दस्तावेज टीए 912 नामक एक लिखित प्राधिकार है, जिसे मालगाड़ी के चालक को रानीपत्रा के स्टेशन मास्टर ने जारी किया था. जिसमें उसे सभी लाल सिग्नल पार करने के लिए अधिकृत किया गया था. यह ट्रेन नंबर 13174 (सियालदह कंचनजंगा एक्सप्रेस) रंगापानी स्टेशन से और छत्तरहाट के लिए जारी किया गया. ऐसा ही T/A रंगापानी रेलवे स्टेशन और छत्तरहाट के बीच के लिए मालगाड़ी सिग्नलों को पारित करने के लिए अधिकृत है.

लाल सिग्नल प्रणाली का उल्लंघन हुआ?

इस संबंध में यह बताना जरूरी है कि रेलवे के नियमों में कहा गया है कि जब एक लोको पायलट को टी/ए 912 दिया जाता है और उसे लाल सिग्नल को पार करना होता है, तो उसे 10 किमी प्रति घंटे की गति से सिग्नल के पास जाना होगा, अपनी ट्रेन को लाना होगा. मतलब कि जितना संभव हो सके सिग्नल के पीछे रुकें. दिन के समय सिग्नल पर 1 मिनट और रात के समय 2 मिनट रुकें और फिर 10 किमी प्रति घंटे की गति से आगे बढ़ें.

साथ ही सिग्नल पार करने के बाद लोको पायलट को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उसकी ट्रेन और पिछली ट्रेन या लाइन पर किसी रुकावट के बीच कम से कम 150 मीटर या दो स्पष्ट ओएचई स्पैन (Over Head equipment) की दूरी बनी रहे. यह कहना गलत है कि टी/ए 912 लोको पायलट को सामान्य गति से लाल सिग्नल पार करने का आदेश देता है.

क्यों हुआ कंचनजंगा रेल हादसा?

अब सवाल उठता है कि आखिरकार ऐसा क्या हुआ जिसकी वजह से मालगाड़ी कंचनजंगा एक्सप्रेस को टक्कर मार दी. क्या मालगाड़ी के ड्राइवर ने रुल को फॉलो नहीं किया या फिर कुछ और हुआ जिसकी वजह से दुर्घटना हुई? मैनुअल सिस्टम से ट्रेन के परिचालन का दस्तावेज कंचनजंगा एक्सप्रेस को भी दिया गया था. जानकारी के मुताबिक कंचनजंगा एक्सप्रेस का ड्राइवर उसी मैनुअल के हिसाब से ट्रेन चला रहा था.

यदि ट्रेन ऑटिमैटिक मैनुअल से चल रही हो तो सबसे पहले उसका स्पीड नियंत्रित होनी चाहिए. उसे हर सिग्नल पर रुककर जाना चाहिए. हर 1120 मीटर की दूरी पर ट्रेन को रुककर आगे बढना चाहिए. उसे सिग्नल लाइट को जरूर देखना चाहिए. मसलन सिग्नल में तीन तरह के लाइट होते हैं. पहली लाल बत्ती इसका मतलब है कि आगे खतरा है, आपको नहीं जाना है. दूसरी पीली बत्ती जिसका मतलब है कि कुछ नियमों का पालन करते हुए आप जा सकते हैं. तीसरी है हरी बत्ती जिसका मतलब है कि आगे रास्ता साफ है आप सामान्य रूप से ट्रेन का परिचालन कर सकते हैं.

क्या है मैनुअल सिग्नल सिस्टम?

जब आप मैनुअल सिग्नल सिस्टम के तहत ट्रेन को चलाते हैं तो सबसे पहले नियम यह है कि हर 1120 मीटर की दूरी पर दिन के समय एक मिनट और रात के समय दो मिनट आपको रुकना होता है. अब सवाल उठता है कि यदि ग्रीन सिग्नल हो तो क्या रुकेंगे. इस पर रेलवे मैनुअल के मुताबिक बेशक ग्रीन सिग्नल क्यों ना हो लेकिन जिस स्टेशन पर आपको मैनुअल सिग्नल सिस्टम के तहत ट्रेन को आगामी स्टेशन तक मैनुअल सिस्टम के तहत चलाने का दिशानिर्देश दिया गया है वहां तक उसी सिस्टम के तहत चलाना है. बेशक इस बीच सिस्टम ठीक ही क्यों ना हो गया हो.

क्यों लगाए जाते हैं ब्लिंकर बल्ब?

आमतौर पर ट्रेन के सबसे पीछे लगे बॉगी में इस तरह के ब्लिंकर बल्ब लगाए जाते हैं जिससे कि मौसम खराब होने की स्थिति अथवा रात में भी यदि कोई ट्रेन खड़ी है तो दूर से दिख जाए. जिस ट्रैक पर यह हादसा हुआ है वह ट्रैक पूरी तरह से कमोबेश सीधी ट्रैक है. आमतौर पर लोको पायलट को इंजन के अंदर से कम से कम एक किलोमीटर की दूरी से यदि ट्रैक पर कोई ट्रेन हो तो दिख जाता है. मालगाड़ी के ड्राइवर इस स्थिति को भी भांपने में नाकाम रहा.

आमतौर पर जब ऑटोमैटिक सिस्टम काम करना बंद हो जाता है तो Absolute block system के तहत ट्रेनों का परिचालन किया जा सकता है. इसमें यह होता है कि एक स्टेशन से दूसरे स्टेशन तक पहली ट्रेन गुजर जाती है तभी पीछे की ट्रेन को आगे जाने के लिए ग्रीन सिग्नल मिलता है. रंगापानी स्टेशन के स्टेशन मास्टर ने Absolute block system की जगह मैनुअल सिस्टम से ट्रेन को जाने की इजाजत दी.

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Kailash Jaiswal

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