55 गांव के ग्रामीणों ने मतदान का किया बहिष्कार, 3 सूत्रीय मांगों को लेकर एक साल से दे रहे धरना

नारायणपुर। छत्तीसगढ़ में आगामी 7 और 17 नवंबर को विधानसभा चुनाव का मतदान किया जाना जाना है. एसे में बस्तर के अंदरूनी इलाकों में इन दिनों क्या चल रहा है, यह जाने के लिए लल्लूराम डॉट कॉम और News 24 mp cg की टीम नक्सलियों के आधार इलाके अबूझमाड़ पहुंची. अबूझमाड़ नारायणपुर जिले का वह इलाका है, जहां सरकार की दखल आजादी के दशकों बाद अब भी नहीं है. यहां देश के विशेष पिछड़ी जनजाति अबूझमाड़िया जनजाति के आदिवासी निवासरत है, जो प्रकृति के साथ अपना जीवन साझा करते हैं.हम अबूझमाड़ के कच्चापाल गांव में पहुंचे, जहां सैकड़ों ग्रामीण बीते एक साल से धरने पर बैठे हुए हैं. यहां ग्रामीणों से जब हमने बात की तो ग्रामीणों ने पूर्णतः चुनाव का बहिष्कार करने की बात करते नजर आए.
ग्रामीणों का कहना है कि 55 गांव से अधिक गांव के ग्रामीण अपनी तीन सूत्रीय मांगों को लेकर धरने पर बैठे हुए है. वहीं सरकार इनकी मांगों को लेकर गंभीर नहीं है, ग्रामीण सरकार पर अनदेखी का आरोप लगा रहे हैं और पूर्ण रूप से मतदान नहीं करने की बात कह रहे हैं. ग्रामीणों का कहना है कि जब उनकी मांगों को लेकर सरकार गंभीर नहीं है तो वे सरकार क्यों चुने?नारायणपुर जिले के अबूझमाड़ में 5 जगह ब्रेहबेड़ा, कच्चापाल, मडोनार, ओरछा और तोयामेटा गांव में हजारों की संख्या में ग्रामीण अपनी तीन सूत्रीय मांगों को लेकर धरने पर बैठे हुए हैं. ग्रामीणों की प्रमुख मांग, ग्राम पंचायत के प्रस्ताव के बिना सरकार की किसी भी प्रकार की दखल उनके ग्रामीण इलाको में ना हो, थाना और पुलिस कैंप ग्रामीण इलाकों में ना खुले, नए वन संरक्षण अधिनियम को रद्द करने और पेसा एक्ट जो ग्रामीणों के लिए बनाया गया है, उसे सुचारू रूप से लागू करने और पालन करने जैसी ग्रामीणों की मांग है.
ग्रामीण इन मांगों को लेकर समय-समय पर जिला मुख्यालय में पहुंच कर ज्ञापन के माध्यम से रखते हैं, लेकिन साल बीतने के बाद उनकी कोई सुनने वाला नहीं है. अबूझमाड़ के ग्रामीण धरना स्थल पर अस्थाई झोपड़ियों का निर्माण किया है, जहां वे रात गुजारते हैं.ग्रामीणों ने हमारी टीम से बातचीत में बताया कि उनके गांवों में सचिव सरपंच और कोई भी जनप्रतिनिधि चुनाव जितने के बाद नहीं पहुंचता है. ग्रामीणों को मूलभूत सुविधाएं भी नहीं मिल पाती है. अबूझमाड़िया बच्चे जाती निवास प्रमाण पत्र नहीं बन पाने के चलते शाला त्यागी हो रहे हैं, जिनकी संख्या सैकड़ों में है.
यहां स्कूल तो खोले गए हैं, लेकिन स्कूलों में शिक्षक भी नहीं आते हैं. वृद्ध ग्रामीणों को वृद्धा पेंशन भी नहीं मिल पाता है. सरकार ना पेय जल का इंतजाम कर पाती है ना ही स्वास्थ सुविधा का. हम जिस पंचायत कच्चापाल में गए हुए थे, वहां पंचायत चुनाव के बाद से अब तक ग्रामीणों की ओर से चुना गया सरपंच नहीं आया, सरपंच मुख्यालय में निवासरत है. ग्राम पंचायत का सचिव भी ग्रामीणों की सुध नहीं लेता है. इतना ही नहीं जब ग्रामीण अपनी समस्या को लेकर मुख्यालय उनके निवास तक पहुंचते हैं तो भी उनके समस्या का निराकरण ना ही सरपंच करते हैं और ना ही सचिव करते हैं.