जम्मू-कश्मीर में सियासी उथल-पुथल: 36 दलों की बदलती सियासी धारा और भविष्य की तस्वीर

जम्मू-कश्मीर में सियासी उथल-पुथल: 36 दलों की बदलती सियासी धारा और भविष्य की तस्वीर
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BBN24/29 अगस्त 2024:  जम्मू-कश्मीर में आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारियाँ जोरों पर हैं, और इस बार चुनावी मैदान में अनेक दल अपनी ताकत दिखाने को तैयार हैं। बीते चार वर्षों में जम्मू-कश्मीर की सियासत में आए बदलाव ने इस चुनाव को विशेष बना दिया है। लंबे समय बाद, 10 साल बाद विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं, जिसमें कांग्रेस, बीजेपी, नेशनल कांफ्रेंस, और पीडीपी जैसे प्रमुख दल सक्रिय हैं। इसके अलावा, अवामी लीग, अवामी नेशनल कांफ्रेंस, और बहुजन समाज पार्टी जैसे क्षेत्रीय दल भी पूरी ताकत से चुनावी जंग में कूद पड़े हैं।

जम्मू-कश्मीर की सियासत में यह पहली बार नहीं है कि इतनी बड़ी संख्या में दल चुनावी मैदान में उतरे हों। लेकिन इस बार स्थिति कुछ अलग है। बीते चार वर्षों में कई नए राजनीतिक दलों का गठन हुआ है, जिनमें से कई दल कांग्रेस और पीडीपी के बागी नेताओं द्वारा स्थापित किए गए हैं। उदाहरण के तौर पर, गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस से अलग होकर डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी का गठन किया, जबकि पीडीपी के बागी नेता अल्ताफ बुखारी ने जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी का गठन किया।

चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, जम्मू-कश्मीर में लगभग 36 राजनीतिक दल रजिस्टर्ड हैं। इनमें से कई दलों ने हाल ही में अपना रजिस्ट्रेशन कराया है, जैसे जम्मू-कश्मीर नेशनलिस्ट पीपुल्स फ्रंट, नेशनल आवामी यूनाइटेड पार्टी, गरीब डेमोक्रेटिक पार्टी, और वॉइस ऑफ लेबर पार्टी। इन नए दलों के अस्तित्व में आने से जम्मू-कश्मीर की सियासत में एक नई दहशत फैल गई है, जिससे पुराने और नए दलों के बीच एक नई प्रतिस्पर्धा का माहौल बन गया है।

स्थानीय सियासी जानकारों का कहना है कि इन नए दलों की उभरती भूमिका का व्यापक असर संभावित है। हालांकि, पनून कश्मीर के ओपी रैना का मानना है कि पुराने दलों की तुलना में इन नए दलों की हैसियत सीमित हो सकती है, क्योंकि बहुत से नए दलों का अस्तित्व पहले के सियासी दलों के समर्थन पर निर्भर था। रैना का कहना है कि कांग्रेस और बीजेपी जैसे प्रमुख दल अपने मजबूत आधार के साथ चुनाव में प्रभाव डाल सकते हैं। वहीं, पीडीपी के बागी नेता अल्ताफ बुखारी की पार्टी और गुलाम नबी आजाद की पार्टी का असर कुछ हद तक देखा जा सकता है, लेकिन यह कहना कि ये दल बड़े स्तर पर सियासी खेल को पूरी तरह बदल देंगे, यह जल्दबाजी होगी।

मकबूल अहमद बट का कहना है कि चुनाव में छोटे-छोटे दलों का उभरना लोकतंत्र में उनकी हिस्सेदारी को दर्शाता है। उनका मानना है कि ये नई पार्टियाँ स्थानीय जनता को जोड़ने और अपने राजनीतिक वजूद को स्थापित करने की कोशिश कर रही हैं। बट का कहना है कि इस बार का चुनाव एक नए दृष्टिकोण से देखा जा रहा है, जिसमें बीजेपी ने मुस्लिम प्रत्याशियों पर दांव लगाया है, और विपक्षी दलों का गठबंधन INDIA ब्लॉक भी अपनी मजबूती दिखा रहा है।

इस प्रकार, जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव की तैयारियाँ एक नया सियासी दृश्य प्रस्तुत कर रही हैं, जिसमें पुराने और नए दलों की सियासी रणनीतियाँ और उनके प्रभाव का सही आंकलन चुनावी परिणामों पर निर्भर करेगा।