छत्तीसगढ़ में ओबीसी 41%, आठ साल में 18 लाख बढ़े, 16 जिलों में बाहुल्य-रिपोर्ट

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रायपुर 23 नवम्बर 2022: छत्तीसगढ़ में पिछड़े वर्ग की जनगणना के लिए बनाए गए क्वांटिफायबल डाटा आयोग ने तीन साल बाद शासन को अपनी रिपोर्ट भेज दी है। मिली जानकारी के मुताबिक आयोग को सर्वे में अन्य पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी की आबादी लगभग 1.26 करोड़ मिल गई है। राज्य में वर्तमान अनुमानित जनसंख्या 3 करोड़ 22 लाख है, इसलिए ओबीसी 41 प्रतिशत के साथ सर्वाधिक हो गए हैं। ओबीसी में भी साहू समाज पहले नंबर पर है। आयोग के इस सर्वे में अन्य पिछड़ा वर्ग की 95 जातियां मिली हैं। इसके अलावा, करीब 10 लाख गरीब भी मिले हैं।

शासन ने अभी यह रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की है। संभावना है कि आदिवासी आरक्षण को लेकर 1 और 2 दिसंबर को होने वाले विधानसभा के विशेष सत्र में आयोग की यह रिपोर्ट पेश कर दी जाए। क्वांटिफायबल डाटा आयोग के सर्वे में यह भी बात सामने आई है कि 33 जिलों में 16 जिले ऐसे हैं, जहां ओबीसी बड़ी संख्या में हैं। रायपुर, दुर्ग, बेमेतरा, बालौदा बाजार, महासमुंद, धमतरी तो ऐसे जिले हैं, जहां पिछड़ा जाति 50 प्रतिशत से अधिक है।

हालांकि क्वांटिफायबल डाटा आयोग की पहले अंतिम तिथि 30 अगस्त तय की गई थी। बताया जाता है कि उस समय 1 करोड़ 18 लाख लोग ही पिछड़ी जाति के मिले थे। इसके बाद दोबारा 16 सितंबर से सर्वे शुरू किया गया। इसमें सरकारी कर्मचारी से लेकर स्कॉलरशिप लेने वाले छात्रों के डाटा को भी शामिल किया गया। कई ऐसे लोग जो छूट गए थे, उनके नाम भी जोड़े गए। इस तरह कुल मिलाकर यह जनसंख्या 1 करोड़ 26 लाख तक पहुंची।

ओबीसी आबादी 41 फीसदी, विधायक 90 में 22

प्रदेश में 90 विधायकों में अन्य पिछड़ा वर्ग से 22 विधायक हैं। फिलहाल कांग्रेस की सरकार और विपक्षी भाजपा, दोनों ही का नेतृत्व ओबीसी के हाथों में है। कांग्रेस से खुद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू, विधानसभा अध्यक्ष चरणदास महंत और खेल मंत्री उमेश पटेल ओबीसी से हैं। दूसरी ओर, भाजपा ने हाल में प्रदेश की कमान ओबीसी सांसद अरुण साव को सौंप दी है। इसके अलावा पार्टी से रायपुर सांसद सुनील सोनी, नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल, पूर्व नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक और पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर तथा महासचिव ओपी चौधरी (पूर्व आईएस) भी इसी वर्ग से हैं।

राशन कार्ड पर आधारित थी, 2014 में ओबीसी की संख्या

2014 में राशन कार्ड के आधार पर किये गए एक सर्वे में पिछड़ी जाति के 1 करोड़ 8 लाख लोग चिन्हित किए गए थे। ओबीसी की जनगणना अलग से नहीं हुई, केवल राशन कार्ड पर आधारित डेटा ही चलता रहा। यह माना जाता रहा है कि प्रदेश में ओबीसी आबादी 50 फीसदी के आसपास हो चुकी है। वास्तविक आंकड़ों का पता लगाने के लिए ही क्वांटिफायबल आयोग बनाया गया। इसकी ताजा रिपोर्ट के हिसाब से 8 साल में ओबीसी के 18 लाख लोग बढ़ गए हैं।

6 माह के लिए बना आयोग तीन साल से ऊपर हो गए

डाटा आयोग का गठन 11 सितंबर 2019 को 6 माह के लिए किया गया था। इसमें प्रदेश के ओबीसी और गरीबी रेखा के नीचे के लोगों को चिन्हित करना था। यह सर्वे पूरी तरह ऑनलाइन था। मार्च 2020 में सर्वे पूरा न होने पर इसे 3 माह के लिए बढ़ा दिया गया। जून में 3 माह के लिए बढ़ाया गया। सितंबर में 6 माह, मार्च 2021 में फिर 6 माह के लिए बढ़ाया गया। सितंबर 2021 में 6 माह, मार्च 2022 में 3 माह, जून 2022 में एक माह, अगस्त 2022 में एक माह और सितंबर 2022 में दो माह के लिए बढ़ाया गया।

आदिवासी आबादी 31 प्रतिशत होने का अनुमान

जनगणना-2011 के अनुसार प्रदेश में आदिवासियों की आबादी 78 लाख 22 हजार 902 थी। यह उस समय की कुल जनसंख्या का 30.6 प्रतिशत थी। 2021 में जनगणना होनी थी, लेकिन कोरोना की वजह से यह 2023 में होगी। आर्थिक सांख्यिकी विभाग की मानें तो वर्तमान में आदिवासियों की जनसंख्या अनुमानत: 90-95 लाख है। यह वर्तमान जनसंख्या से लगभग 31 प्रतिशत है।