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बाल अपराधों में कनविक्शन रेट और केस रिपोर्टिंग मैकेनिज्म सुधारना जरूरी: प्रियंक कानूनगो

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नई दिल्ली 30 अक्टूबर 2022: देश भर में बच्चों पर बढ़ रहे अपराध चिंता का विषय बना हुआ है। बाल अपराधों के बढ़ते मामलों पर राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने आईएएनएस से बात करते हुए बताया कि बाल अपराधों में कनविक्शन रेट और केस रिपोटिर्ंग मैकेनिज्म को दुरूस्त करना जरूरी है। आईएएनएस से प्रियंक कानूनगो ने बाल अपराधों को लेकर विस्तार से बातचीत की है।

सवाल: आंकड़े बताते हैं कि मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और उत्तरप्रदेश जैसे राज्यों में बाल अपराध बढ़ रहा है। आयोग इसको कैसे देखता है?

उत्तर: मध्यप्रदेश की बात करें तो वहां मामलों की रिपोटिर्ंग सही तरीके से हो रही है। अगर कुछ राज्यों में केस सही तरीके से रिपोर्ट हो रहे हैं, तो इसे सकारात्मक तरीके से देखा जाना चाहिए। ये बात भी सही है कि बाल अपराध बढ़ा है। समाज में संवेदनशीलता की कमी और अन्य वजहों से ऐसा हो रहा है। इसे बड़े पैमाने पर देखना होगा।

सवाल: कहां कहां केस सही तरीके से रिपोर्ट नहीं किए जा रहे?

उत्तर: मेरा ऐसा अनुभव है कि कई राज्य रिपोर्ट ही नहीं लिखते। बिहार और झारखंड जैसे राज्यों में सही तरीके से रिपोर्ट होती ही नहीं है। हमारे पास कई ऐसे मामले सामने आए हैं। पुलिस केस दर्ज नहीं करना चाहती। मामलों को छिपाना चाहती है। ऐसे में ये नहीं कहा जा सकता कि जिस राज्य में घटनाएं ज्यादा हैं, उसकी स्तिथि खराब है। जैसे की पश्चिम बंगाल है, वहां रिपोर्ट ही दर्ज नहीं होती। आयोग को कई मामले ऐसे मिले हैं, जहां हमारे हस्तक्षेप के बाद एफआईआर हुई है। केस रिपोटिंग का सही मेकेनिज्म नहीं है।

सवाल: केस रिपोटिर्ंग मेकेनिज्म को ठीक करने के लिए आयोग क्या कदम उठा रहा है?

उत्तर: हम चाहते हैं बच्चों से जुड़ा हर केस रिपोर्ट हो। इसके लिए हाल ही में हमने सभी राज्यों के जिलों में स्तिथ जुविनाइल पुलिस यूनिट और उनसे जुड़े अधिकारियों की क्षेत्रवार बैठक की है और समस्या को जानने की कोशिश की है। इसमें पुलिस संवेदनशीलता सहित नियुक्तियों को लेकर चर्चा की गयी है। इसकी पूरी रिपोर्ट तैयार की जा रही है। इसके अलावा हमनें वकीलों और पॉक्सो कोर्ट के जजों से भी चर्चा की है। इसका मकसद है कि बच्चों को न्याय दिलाने से जुड़े सभी स्टेकहोल्डर्स इन समस्याओं का समाधान खोंजे। पॉक्सो कानून जो प्रभावी कानून है, उसे अगर सही तरीके से इम्प्लीमेंट कर पाए तो बच्चों से जुड़े अपराधों को रोका जा सकता है।

सवाल: बाल अपराधों में सजा दिलाने की दर भी कम है। इसके लिए क्या उपाय किए जा रहे हैं?

उत्तर: बड़ी समस्या है, सजा दिलाने की दर यानी कनविक्शन रेट की। हमें पता चलता है कि बच्चों के मामलों में कनविक्शन रेट 40 प्रतिशत तक रह जाता है। ये अगर बढ़ेगा तो लोगों के दिल में कानून का खौफ बढ़ेगा। कनविक्शन का असर कई चीजों पर निर्भर है। बच्चों का पुनर्वास इसमें सबसे महत्वपूर्ण है। इसके अलावा समय सीमा के अंदर जांच होना जरूरी है। कानून एक साल का समय देता है ट्रायल के लिए, ऐसे में जरूरी है पुलिस की चार्जशीट समय पर हो, डॉक्टर और अन्य संबंधित अधिकारी पहले ही समन्स में अपना बयान दर्ज कराएं।

इसके लिए हमने बाल अपराध से जुड़े मामलों के लिए राज्य बाल आयोग और अन्य एजेंसियों के साथ मिलकर एक पोर्टल भी चालू किया है। ये पोर्टल बच्चों की काउंसलिंग से लेकर उनके पुर्नवास और मामलों की प्रगति को ट्रैक करेगा। इसे हमने कुछ जिलों में प्रभावी किया है। बाकी इससे जुड़ी समस्याओं को लेकर हमने 31 अक्टूबर तक सुझाव मांगे हैं। सुझाव आने के बाद इसे सभी जिलों में प्रभावी किया जाएगा।

सवाल: बहुत से मामलों में परिचित या करीबी ही अपराधी होता है, जिससे मामले प्रभावित होते हैं। इसको लेकर क्या काम किया जा रहा है?

उत्तर: ऐसे मामलों के कनविक्शन पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। कई बार पड़ोसी या जानकर अपराधी दबंग होता है ऐसे मामलों में पीड़ित ही नहीं बल्कि पूरे परिवार का ही पुनर्वास करना पड़ता है। ऐसे भी मामले आए हैं, जहां ट्रायल के दौरान पीड़ित और उसके परिवार को धमकाया जाता है। इसके लिए बच्चों का सही केयर प्लान बने, सोशल इंवेस्टिगेशन हो और हर पहलू को ट्रैक किया जाए तभी कनविक्शन हो सकता है।

सवाल: स्कूल के शिक्षकों से जुड़े भी कई मामले सामने आए हैं, बच्चे डर के चलते शिकायत नहीं कर पाते। इसको लेकर आयोग क्या कर रहा है

उत्तर: स्कूलों को लेकर हमनें शिक्षा मंत्रालय के साथ मिलकर एक मैनुअल तैयार किया है, जो शिक्षकों की ट्रेनिंग से लेकर कई जागरूकता कार्यक्रम भी करते हैं। इसको हमारे अलावा राज्य सरकारें भी करती रहती हैं।

सवाल: बच्चों की तस्करी के मामलों में बढ़ोत्तरी देखी जा रही है। इसके लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं?

उत्तर: इसके लिए गृह मंत्रालय की नई एडवाइजरी आने के बाद हमने विस्तृत दस्तावेज तैयार किया है। दरअसल बच्चों की तस्करी गरीबी की वजह से ज्यादा होती है। कुछ परिवार बच्चों की देखरेख सही से नहीं कर पाते, इसलिए उनकी तस्करी होती है। हमने कई केस स्टडी की हैं, जिसमें पता चला है कि हर बार तस्कर बच्चों को बेहोश करके नही ले जाता।

उसे लालच देकर, सपने दिखाकर और फुसलाकर ले जाया जाता है। इसके लिए हमनें राज्यों को इस तरफ ध्यान देने कहा है। ऐसे बच्चों का सर्वे कराने को भी कहा गया है। खासकर उन इलाकों में जहां बाल तस्करी ज्यादा होती है। हमने भी असम, मध्यप्रदेश, बिहार जैसे राज्यों में इसका पायलट किया है। इसमें ऐसे बच्चों को चिन्हित करने कहा गया है, जिनकी तस्करी हो सकती है। इसके अलावा भारत सरकार की योजनाओं से उन परिवारों को आर्थिक मजबूती देने का काम भी किया जा रहा है।

सवाल: बाल तस्करी और बाल मजदूरी कर बच्चों को विदेश ले जाने के मामले भी काफी सामने आए हैं ?

उत्तर: हमने सीमा पार बाल तस्करी को रोकने के लिए बॉर्डर के 75 जिलों जिनमें नेपाल, भूटान और बांग्लादेश के बॉर्डर शामिल हैं। यहां पर हमने सभी स्टेकहोल्डर्स के साथ बैठकें करवाई हैं। इसमें हमें तस्करी के कई नए रूट्स पता चले हैं। ये भी पता चला है कि भारत के बच्चों को ज्यादातर भूटान ले जाया जाता है। इस संबंध में कदम उठाए जा रहे हैं।

सवाल: कई बार देखा गया है कि राज्यों और केंद्र में बाल अपराधों को लेकर समन्वय नहीं रहता?

उत्तर: जी हां, कई राज्य उदासीन हैं। हम अपने तरीके से इसे सुधारने में लगे हैं। हमने काउंसलिंग मैकेनिज्म भी बनाया है।