Vaikuntha Chaturdashi 2025 : जब भगवान विष्णु ने महादेव की भक्ति में की अपनी आंख अर्पित – पढ़ें वैकुण्ठ लोक की प्राप्ति देने वाली पवित्र कथा

Vaikuntha Chaturdashi Pauranik Katha 2025: हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को वैकुण्ठ चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है। यह दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव दोनों की संयुक्त आराधना का प्रतीक है। शास्त्रों के अनुसार, जो भक्त इस पावन अवसर पर दोनों देवों की श्रद्धा से पूजा करता है, उसे वैकुण्ठ धाम की प्राप्ति होती है और उसके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। यह तिथि भक्ति, समर्पण और आत्मशुद्धि का अद्वितीय पर्व मानी जाती है।
भगवान विष्णु की अनोखी भक्ति कथा
पौराणिक मान्यता के अनुसार, एक बार भगवान विष्णु काशी नगरी (वाराणसी) पहुंचे और वहां भगवान विश्वनाथ (शिव) की आराधना करने का संकल्प लिया। उन्होंने मणिकर्णिका घाट पर गंगा स्नान किया और निश्चय किया कि वे एक हजार कमल पुष्पों से भगवान शिव का पूजन करेंगे।
जब पूजा आरंभ हुई, तब भगवान शिव ने विष्णु जी की भक्ति की परीक्षा लेने के लिए एक कमल फूल छिपा दिया। पूजा के समय विष्णु जी ने देखा कि उनके पास अब केवल 999 कमल ही बचे हैं। उन्होंने सोचा —
“मेरी आंखें भी तो कमल के समान हैं, मुझे कमलनयन कहा जाता है। यदि एक कमल कम है, तो मैं अपनी आंख से पूजन पूर्ण करूंगा।”
यह सोचकर उन्होंने अपनी एक आंख अर्पित करने का संकल्प किया। जैसे ही भगवान विष्णु अपनी आंख निकालने लगे, तभी महादेव प्रकट हो गए। वे विष्णु की निस्वार्थ भक्ति देखकर अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्हें वरदान दिया।
शिव-विष्णु का आशीर्वाद
भगवान शिव ने विष्णु जी से कहा —
“हे विष्णु! आपकी भक्ति अनुपम है। आपके समर्पण के कारण आज से यह तिथि ‘वैकुण्ठ चतुर्दशी’ के नाम से जानी जाएगी। जो भी भक्त आज के दिन पहले आपकी और फिर मेरी पूजा करेगा, उसे वैकुण्ठ लोक की प्राप्ति होगी।”
महादेव ने प्रसन्न होकर विष्णु जी को सुदर्शन चक्र प्रदान किया और उन्हें अक्षय यश का आशीर्वाद दिया।
वैकुण्ठ चतुर्दशी का आध्यात्मिक महत्व
यह कथा हमें सिखाती है कि सच्ची भक्ति में त्याग, निस्वार्थ भाव और समर्पण का स्थान सर्वोच्च है। भगवान विष्णु ने अपने देवत्व का अभिमान नहीं किया, बल्कि सच्ची भक्ति के रूप में स्वयं को समर्पित कर दिया।
वैकुण्ठ चतुर्दशी का संदेश यही है कि अहंकार छोड़कर श्रद्धा से शिव-विष्णु दोनों की पूजा करने वाला भक्त मोक्ष का अधिकारी बनता है।
वैकुण्ठ चतुर्दशी व्रत का फल
इस दिन गंगा स्नान, शिवलिंग का अभिषेक, और भगवान विष्णु की आराधना करने से जीवन में समृद्धि, शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
मान्यता है कि इस दिन स्वर्ग और वैकुण्ठ के द्वार खुले रहते हैं, और सच्चे मन से व्रत करने वाला भक्त पापों से मुक्त होकर परम शांति को प्राप्त करता है।



