भारत में अपशिष्ट प्रबंधन क्रांति को आगे बढ़ा रही शून्य-अपशिष्ट सोसायटी

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New Delhi: भारत जैसे तेजी से शहरीकरण वाले देशों में अपशिष्ट प्रबंधन सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरणीय स्थिरता की आधारशिला है। देश में प्रतिदिन 159,000 टन से अधिक कचरा उत्पन्न होता है और स्वच्छ तथा स्वस्थ रहने के लिए संग्रहण, पृथक्करण और प्रसंस्करण की कुशल प्रणालियाँ महत्वपूर्ण हैं। जीवन में प्रतिदिन स्वच्छता के महत्व को पहचानते हुए, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में इस बात पर जोर दिया कि कैसे स्वच्छता एक राष्ट्रीय प्राथमिकता बन गई है, जो पूरे देश में व्यवहार परिवर्तन को प्रेरित कर रही है।

इस दृष्टिकोण को आगे बढ़ाने के लिए, स्वच्छ भारत मिशन की 10वीं वर्षगांठ पर स्वभाव स्वच्छता संस्कार स्वच्छता (4एस) अभियान शुरू किया जा रहा है। 17 सितंबर से 2 अक्टूबर, 2024 तक चलने वाली यह पहल वार्षिक “स्वच्छता ही सेवा” परंपरा के अनुरूप है और महात्मा गांधी की जयंती पर मनाए जाने वाले स्वच्छ भारत दिवस के अग्रदूत के रूप में कार्य करती है।

17 सितंबर, 2024 तक, स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) ने पूरे ग्रामीण भारत में ठोस और तरल कचरे के प्रबंधन में महत्वपूर्ण प्रगति की है। 3,98,744 गांवों ने ठोस अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली लागू की है, जबकि प्रभावशाली 4,96,495 गांवों ने अपशिष्ट संग्रहण, पृथक्करण और तरल अपशिष्ट प्रबंधन की व्यवस्था की है। गावों में ठोस कचरा प्रबंधन के लिए 3,52,162 कचरा संग्रहण शेड और 9,31,454 सामुदायिक खाद गड्ढे बनाये गए हैं । कुशल कचरा संग्रहण ने के लिए 5,04,913 वाहन तैनात किए गए हैं। तरल अपशिष्ट प्रबंधन के संदर्भ में, 17,58,725 सामुदायिक सोख गड्ढे और 72,65,636 घरेलू सोख गड्ढे बनाये गए हैं, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में जल जमाव और प्रदूषण को कम करने में मदद मिली है।

जहाँ एक ओर ग्रामीण क्षेत्र कचरा प्रबंधन के क्षेत्र में पर्याप्त प्रगति कर रहे हैं , वही दूसरी ओर शहरों को विशेष रूप से मानसून के दौरान कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।

शहरों में प्रभावी अपशिष्ट प्रबंधन ज़्यादा ज़रूरी है, जहां अनुचित निपटान से जल-जमाव हो सकता है और स्वास्थ्य संबंधी जोखिम बढ़ सकते हैं। हालाँकि, कई शहर शून्य-अपशिष्ट रणनीतियों को अपनाकर, समुदायों और आवास समाजों को टिकाऊ जीवन के मॉडल में बदलकर चुनौती का सामना कर रहे हैं।

मानसून का मौसम प्रभावी अपशिष्ट प्रबंधन की तात्कालिकता को रेखांकित करता है, क्योंकि अनुचित निपटान से जल-जमाव हो सकता है और स्वास्थ्य के लिए जोखिम बढ़ सकता है। सम्पूर्ण भारत के शहर शून्य-अपशिष्ट रणनीतियों को अपना रहे हैं और समुदायों तथा आवासीय समाजों को टिकाऊ जीवन के मॉडल में बदल रहे हैं।

प्रतिदिन 123,000 टन से अधिक कचरे का प्रसंस्करण किया जाता है और 86,000 से अधिक वार्डों में घर-घर जाकर कचरे का संग्रह और पृथक्करण अभ्यास किया जाता है । भारत में अपशिष्ट प्रबंधन के लिए जारी प्रयासों में उल्लेखनीय प्रगति देखी जा रही है । इस सफलता का अभिन्न अंग शून्य-अपशिष्ट आवास समितियां हैं, जो अपशिष्ट उत्पादन को कम करने और पर्यावरण संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करने में अहम भूमिका निभाती हैं ।