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Vidur Niti: महाभारत कालीन महात्मा विदुर से सभी परचित हैं. वे महाराजा धृतराष्ट के सलाहकार और भाई थे. वे बहुत ही कुशाग्र बुद्धि के थे. हालाँकि महात्मा विदुर अति विवेकवान और धर्मशील तथा न्यायप्रिय होने के बावजूद दासी पुत्र होने के कारण उन्हें राजा बनने का अधिकार नहीं था. इसके बावजूद वे अपनी प्रतिभा के चलते हस्तिनापुर राज्य के प्रधानमंत्री बने. उन्हें हस्तिनापुर के राजा पांडु ने यह पद प्रदान किया था.
विदुर हमेशा सत्य का साथ देते थे. महात्मा विदुर ने मानव के उन 4 भावों को बताया है, जिसके कारण व्यक्ति का जीवन बर्बाद हो सकता है. इस लिए विदुर नीति के अनुसार इन भावों से व्यक्ति को बहुत जल्द दूरी बना लेना चाहिए. आइये जानें इन भावों के बारे में:-
विदुर नीति में कहा गया है कि:-
क्रोधो हर्षश्च दर्पश्च ह्रीः स्तम्भो मान्यमानिता।
यमर्थान्नपकर्षन्ति स वै पण्डित उच्यते।।
विदुर नीति के अनुसार, कुछ भाव मनुष्य को उनके पुरुषार्थ यानी उनके कर्म पथ से विचलित कर देते हैं अर्थात ये भाव उन्हें उनके लक्ष्य से डिगा देते हैं. अगर व्यक्ति उन भावों से स्वयं को बचाले तो वह बुद्धिमान कहलाता है और अपने जीवन में तरक्की करता है.
क्रोध भाव: विदुर नीति के अनुसार क्रोध व्यक्ति को पागल बना देता है. क्रोध के वशीभूत होकर काम करने वाले व्यक्ति सही और गलत का निर्णय नहीं कर पता है. वह क्या कर रहा है, उसे खुद ही नहीं पता होता है. इसी लिए क्रोध आपकी बुद्धि का सबसे बड़ा शत्रु है. इससे बचना चाहिए.
हर्ष या अति उत्साह: अति हर्ष या उत्साह व्यक्ति के लिए बहुत हानिकर होता है. अत्यंत हर्ष की स्थिति में व्यक्ति अपना मानसिक स्थिति खो देता है. वह भावनाओं में बहकर गलत निर्णय ले लेता है. इस लिए यह मनुष्य की बुद्धि भ्रष्ट करने का करक है.
ह्री यानी विनय : विदुर नीति में ह्री का आशय चापलूसी से है. चतुर लोग अपना काम निकालने के लिए आपकी खुशामद करता है. इसके कारण मनुष्य गलत निर्णय ले लेता है.
स्वयं के पूज्य का भाव: महात्मा विदुर कहते हैं कि स्वयं के पूज्य का भाव भी व्यक्ति के मनो मस्तिष्क को प्रभावित करता है. वह पूज्य भाव के कारण गलत निर्णय ले लेता है. इस लिए इससे व्यक्ति को दूरी बनाकर रखनी चाहिए.