आदि शंकराचार्य जी के 2532वें प्राकट्य महोत्सव पर रुद्राभिषेक एवं सत्संग का आयोजन
सनातन धर्म की रक्षा हेतु शंकराचार्य परंपरा को अपनाने का आह्वान

रायपुर, हिंदू धर्म के पुनः संस्थापक माने जाने वाले भगवान आदि शंकराचार्य जी के 2532वें प्राकट्य महोत्सव के शुभ अवसर पर मारवाड़ी कुआं स्थित शिव मंदिर परिसर में रुद्राभिषेक, पूजन, आराधना एवं सत्संग का आयोजन भक्ति एवं श्रद्धा के वातावरण में सम्पन्न हुआ।
मुख्य वक्ता आचार्य पंडित झम्मन शास्त्री जी ने कहा कि आदि शंकराचार्य जी का जन्म उस समय हुआ, जब हिंदू धर्म को विभाजित करने के लिए अनेक पाखंड, नास्तिकता और विदेशी आक्रमणकारियों की सक्रियता बढ़ चुकी थी। उन्होंने मात्र आठ वर्ष की आयु में संन्यास लेकर संपूर्ण भारत में धर्म यात्रा करते हुए सनातन धर्म के सिद्धांतों की पुनः स्थापना की। पंचदेव उपासना, चारों धाम, शक्तिपीठों और मठों की स्थापना कर उन्होंने भारत को आध्यात्मिक एकता के सूत्र में पिरोया।
उन्होंने बताया कि वर्तमान समय में गोवर्धन मठ, पुरी पीठ के 145वें जगद्गुरु शंकराचार्य महाभाग के नेतृत्व में चल रहा राष्ट्र उत्कर्ष अभियान, भारत को हिंदू राष्ट्र के रूप में सुसंस्कृत, सुशिक्षित, सुरक्षित एवं सेवा परायण समाज में रूपांतरित करने का संकल्प है। इस अभियान के अंतर्गत देशभर में धर्म सभाओं एवं संगोष्ठियों का आयोजन प्रस्तावित है।
आचार्य जी ने शंकराचार्य जी के जीवन दर्शन को शिक्षा प्रणाली में शामिल करने की आवश्यकता पर भी बल दिया, ताकि भावी पीढ़ी सनातन संस्कृति से जुड़ी रहे और राष्ट्र निर्माण में सक्रिय भूमिका निभा सके।
इस पावन आयोजन में वीरेंद्र शर्मा, प्रेमचंद भूषणिया, दीपक राय, नरेश शर्मा, विजय शर्मा, सत्यनारायण जोशी, सहित अनेक श्रद्धालु एवं पीठ परिषद, आदित्य वाहिनी व आनंद वाहिनी के सदस्य उपस्थित थे।