जिस आटोमैटिक सिग्‍नलिंग सिस्‍टम के खराब होने से हुआ हादसा, कितना पुराना है?

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ई दिल्‍ली. पश्चिम बंगाल में कंचनजंगा एक्‍सप्रेस हादसे में आटोमैटिक सिग्‍निलंग सिस्‍टम को लेकर बहस छिड़ गयी है. क्‍योंकि जिस समय हादसा हुआ था, उस समय यह सिस्‍टम काम नहीं कर रहा था.ट्रेनों का संचालन मैनुअल किया जा रहा था. आटोमैटिक सिग्‍निलंग सिस्‍टम देश में करीब 100 साल पुराना है. आइए जानें-

मानवीय विफलता के कारण होने वाली दुर्घटना को खत्म करने के लिए भारतीय रेलवे में आटोमैटिक सिग्‍निलिंग सिस्‍टम करीब 100 वर्ष पहले शुरू किया गया था. इस सिस्‍टम को धीरे-धीरे देशभर के रेलवे ट्रैक में लगाया जा रहा है. आर गुप्‍ता की किताब भारतीय रेलवे के अनुसार इस सिस्‍टम की शुरुआत 1928 में सेंट्रल रेलवे से की गयी है. हालांकि स्‍थान का नाम नहीं लिखा है, लेकिन माना जा रहा है कि मुंबई के आसपास कहीं से किया गया होगा. क्‍योंकि मौजूदा समय से ज्‍यादा ट्रेनों का संचालन मुंबई स्‍टेशन से किया जाता है, इसी समय पहले भी इसी स्‍टेशन से सबसे अधिक ट्रेनों का संचालन होता रहा होगा. इस तरह ये सिस्टम 96 पुराना हो चुका है.

रेलवे बोर्ड के डायरेक्‍टर इनफॉरमेशन एंड पब्लिसिटी शिवाजी मारुति सुतार बताते हैं कि 6,498 स्टेशनों पर आटोमैटिक सिग्‍निलंग सिस्‍टम लगाया जा चुका है. देश में कुल 7000 के करीब रेलवे स्‍टेशन हैं. यानी कुछ ही स्‍टेशन बचे हुए हैं, जिन्‍हें जल्‍द ही कवर लिया जाएगा.

क्‍या है ऑटोमेटिक सिग्‍नल सिस्टम

इस सिस्‍टम के तहत दो स्‍टेशनों के बीच में भी कई सिग्‍नल लगे होते हैं. ये सिग्‍लन ऑटोमैटिक काम करते हैं. इनकी दूरी तय रहती है लेकिन अलग-अलग सेक्‍शन में जरूरत के अनुसार होती है. जहां पर ट्रेनों का ट्रैफिक अधिक है और किसी तरह की कोई तकनीकी समस्‍या नहीं है तो कम दूरी के अंतराल में सिग्‍लन लगे हैं और जहां ऐसी कोई समस्‍या है तो अधिक दूरी पर सिग्‍लन लगे हुए हैं. उदाहरण के लिए मुंबई में ट्रेनों की संख्‍या अधिक है, इस वजह से 500 मीटर तक की दूरी ट्रेनें चलती हैं. यहां पर‍ सिग्‍लन करीब- करीब हैं. एक के पीछे एक ट्रेन चलती हैं. इस वजह से दो स्‍टेशनों के बीच काफी संख्‍या में ट्रेनों का संचालन होता है. कंचनजंगा रेल हादसे में मालगाड़ी के लोकोपायलट ने सिग्‍नल को तोड़कर टक्‍कर मारी है. सिग्‍लन की अनेदेखी कैसे हो रही है, इसकी जांच की जा रही है.

एब्सोल्यूट ब्लॉक सिस्टम से भी चलती हैं ट्रेनें

ऑटोमेटिक सिग्‍नल सिस्टम जहां पर नहीं है, वहां पर एब्सोल्यूट ब्लॉक सिस्टम से ट्रेनों का संचालन होता है. एब्सोल्यूट ब्लॉक सिस्टम के तहत ट्रेनों के बीच की दूरी स्‍टेशनों के बीच की दूरी पर निर्भर करती है. उदाहरण के लिए जब एक ट्रेन अगले स्‍टेशन को पार कर जाती है तो पहले स्‍टेशन पर खड़ी ट्रेन को सिग्‍लन मिलता है. इस सिस्‍टम में स्‍टेशनों के बीच दूरी चाहे एक किमी. हो, या कई किमी., इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. इस तरह दो स्‍टेशनों के बीच कोई ट्रेन नहीं होती है. इससे ट्रेनों के बीच का गैप काफी रहता है. इस सिस्‍टम के तहत सीमित संख्‍या में ही ट्रेनों का संचालन होता है. हालांकि इसमें भी सिग्‍लन होते हैं. इस सिस्‍टम के तहत दूरी कोई तय नहीं होती है.