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हरेली तिहार पर मुख्यमंत्री निवास बना सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक, राउत नाचा से गूंजा छत्तीसगढ़ी लोक जीवन; मुख्यमंत्री साय ने कृषि यंत्रों की पूजा की

रायपुर | छत्तीसगढ़ी लोकजीवन की खुशबू और पारंपरिक उल्लास के बीच मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने राजधानी स्थित अपने निवास कार्यालय में हरेली तिहार पूरे धूमधाम से मनाया। कृषि यंत्रों की विधिवत पूजा के साथ हरेली पर्व की शुरुआत हुई, और इसके साथ ही मुख्यमंत्री निवास छत्तीसगढ़ की ग्रामीण और सांस्कृतिक छवि में रंग गया।

कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ की प्राचीन लोकपरंपराओं को सजीव रूप से प्रदर्शित किया गया। पारंपरिक वाद्य यंत्रों की गूंज, राउत नाचा की रंग-बिरंगी झलक, और आदिवासी कलाकारों की मोहक प्रस्तुतियों ने उपस्थित जनसमूह को मंत्रमुग्ध कर दिया। लोक संगीत की मिठास पूरे वातावरण में घुली रही।

मुख्यमंत्री साय ने गाय और बछड़े को पारंपरिक “लोंदी” और हरा चारा खिलाकर पशुधन संरक्षण का संदेश भी दिया। उन्होंने कहा, “हरेली सिर्फ खेती-किसानी का पर्व नहीं, बल्कि प्रकृति, पर्यावरण और पशुधन से हमारे संबंधों की अभिव्यक्ति है।” उन्होंने प्रदेशवासियों से अपील की कि वे अपनी परंपराओं से जुड़ें और पशुधन की देखभाल को प्राथमिकता दें।

इस अवसर पर विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह, उप मुख्यमंत्री विजय शर्मा, कृषि मंत्री रामविचार नेताम समेत कई मंत्री और जनप्रतिनिधि भी उपस्थित रहे। पहली बार मुख्यमंत्री निवास में आयोजित इस पूजा में भिलाई की युवती धनिष्ठा शर्मा और उनके भाई दिव्य शर्मा ने मंत्रोच्चार कर भगवान शिव का अभिषेक किया, जिसने सभी को विशेष रूप से प्रभावित किया।

मुख्यमंत्री निवास में सजी छत्तीसगढ़ की परंपरा

हरेली तिहार के मौके पर छत्तीसगढ़ की पारंपरिक विरासत और ग्रामीण जीवन की झलक मुख्यमंत्री निवास में देखने को मिली। यहाँ सजे विभिन्न पारंपरिक कृषि यंत्र और ग्रामीण उपकरण जैसे काठा, खुमरी, कांसी की डोरी, झांपी, और कलारी ने सबका ध्यान खींचा।

काठा – पुराने समय में धान मापने के लिए इस्तेमाल होने वाला यह लकड़ी का गोल माप यंत्र, लगभग 4 किलो धान समेटता है। यह मजदूरी के मापदंड के रूप में भी काम आता था।

खुमरी – गुलाबी रंग की यह पारंपरिक संरचना, बांस की पतली पट्टियों से बनी होती है और चरवाहे इसे धूप या वर्षा से बचने के लिए पहनते थे।

कांसी की डोरी – खेतों की मेड़ों पर उगने वाले कांसी पौधे से बनाई जाती यह डोरी मजबूत होती है और खटिया बुनने के काम आती है।

झांपी – बांस की बनी, ढक्कन युक्त गोलनुमा पेटी, जिसका उपयोग शादी-ब्याह में दूल्हे की सामग्री रखने के लिए किया जाता रहा है।

कलारी – बांस के डंडे में लोहे का हुक जोड़कर बनाई गई यह संरचना धान मिंजाई में काम आती है।

इन उपकरणों की प्रदर्शनी और उनके महत्व की प्रस्तुति ने कार्यक्रम को शैक्षिक और सांस्कृतिक दोनों ही दृष्टियों से समृद्ध बना दिया। मुख्यमंत्री साय ने अपने संदेश में कहा, “हमारी संस्कृति में पशु, कृषि और प्रकृति सब एक परिवार की तरह हैं। हरेली हमें इस रिश्ते को याद दिलाता है।”

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Kailash Jaiswal

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