धार्मिक परंपरा बनाम संवैधानिक सवाल: अजमेर दरगाह में पीएम की चादर पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई की तैयारी

नई दिल्ली | अजमेर में स्थित सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह को लेकर एक बार फिर कानूनी और राजनीतिक बहस तेज हो गई है। प्रधानमंत्री की ओर से हर वर्ष उर्स के अवसर पर चढ़ाई जाने वाली चादर की परंपरा पर रोक लगाने की मांग को लेकर अब मामला देश की सर्वोच्च अदालत तक पहुंच गया है।
विश्व वैदिक सनातन संघ के अध्यक्ष जितेंद्र सिंह ने इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की है। याचिका में कहा गया है कि संवैधानिक पदों पर बैठे व्यक्तियों द्वारा किसी विशेष धार्मिक स्थल पर औपचारिक रूप से चादर चढ़ाना संविधान की भावना और धार्मिक तटस्थता के सिद्धांतों के अनुरूप नहीं है।
याचिकाकर्ता का दावा है कि जिस स्थान पर वर्तमान में दरगाह स्थित है, वहां प्राचीन काल में संकट मोचन महादेव मंदिर मौजूद था। ऐसे में सरकारी स्तर पर दरगाह में चादर चढ़ाने की परंपरा ऐतिहासिक तथ्यों और धार्मिक संतुलन के प्रश्न खड़े करती है। इसी आधार पर उन्होंने इस परंपरा पर तत्काल रोक लगाने की मांग की है।
पहले से अदालत में विचाराधीन है मामला
इस विवाद से जुड़ा एक मामला पहले ही अजमेर की सिविल अदालत में चल रहा है। हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता की ओर से दायर याचिका में उर्स के दौरान प्रधानमंत्री की ओर से चादर भेजे जाने की परंपरा को चुनौती दी गई थी। गुरुवार को हुई सुनवाई में दोनों पक्षों ने अदालत के समक्ष अपने-अपने तर्क प्रस्तुत किए। सुनवाई के बाद अदालत ने कोई अंतरिम आदेश जारी नहीं किया और मामले की अगली तारीख 3 जनवरी तय की है।
सुप्रीम कोर्ट में नई याचिका
अब इसी मुद्दे पर विश्व वैदिक सनातन संघ ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। हालांकि, इस याचिका पर सुनवाई की तारीख अभी निर्धारित नहीं की गई है। मामले के सुप्रीम कोर्ट पहुंचने के बाद यह बहस और गहराने की संभावना जताई जा रही है।
उर्स कार्यक्रम जारी रहेगा
गौरतलब है कि हर वर्ष उर्स के अवसर पर प्रधानमंत्री और अन्य संवैधानिक पदों पर बैठे प्रतिनिधियों की ओर से अजमेर दरगाह में चादर पेश की जाती रही है। इसी क्रम में केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजू सोमवार को अजमेर पहुंचने वाले हैं और उर्स कार्यक्रम में शामिल होंगे। अल्पसंख्यक मंत्रालय की ओर से इस दौरान चादर पेश किए जाने की तैयारी है।
इस घटनाक्रम के बाद धार्मिक परंपराओं, संवैधानिक मर्यादाओं और ऐतिहासिक दावों को लेकर नई बहस छिड़ने के आसार हैं।



