छत्तीसगढ़ में ऐतिहासिक सरेंडर: AK-47 से लैस 208 नक्सलियों ने छोड़ा हिंसा का रास्ता

रायपुर |छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद के खिलाफ चल रही जंग आज एक ऐतिहासिक मोड़ पर पहुंच गई है। राज्य के दंतेवाड़ा और नारायणपुर जिले के बीच फैले अबूझमाड़ क्षेत्र में सक्रिय 208 नक्सलियों ने एक साथ आत्मसमर्पण कर दिया है। यह अब तक का सबसे बड़ा सामूहिक सरेंडर माना जा रहा है।
सरकार और सुरक्षा बलों के सामने आत्मसमर्पण करने वालों में कई कुख्यात कमांडर और लंबे समय से फरार नक्सली भी शामिल हैं। इन सभी ने AK-47, INSAS राइफलें, SLR और BGL लॉन्चर जैसी कुल 153 अत्याधुनिक हथियारों का बड़ा जखीरा भी जमा कराया है।
अबूझमाड़ हुआ नक्सल-मुक्त
इस सामूहिक आत्मसमर्पण के बाद अबूझमाड़ — जिसे वर्षों से नक्सलियों का अभेद्य गढ़ माना जाता था — अब लगभग पूरी तरह नक्सल-मुक्त घोषित किया गया है। उत्तर बस्तर में “लाल आतंक” का सफाया होने के बाद अब यहां शांति और विकास की नई सुबह दिखाई देने लगी है।
पिछले दो दिनों में कुल 258 नक्सलियों ने मुख्यधारा में वापसी की है, जिनमें छत्तीसगढ़ के 197 और महाराष्ट्र के 61 नक्सली शामिल हैं।
शाह बोले – “ऐतिहासिक सफलता”
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस उपलब्धि को “ऐतिहासिक” बताते हुए कहा कि “अबूझमाड़ और उत्तर बस्तर अब नक्सल-मुक्त हैं।” उन्होंने यह भी दोहराया कि केंद्र सरकार का लक्ष्य 31 मार्च 2026 तक देश से नक्सलवाद का पूर्ण उन्मूलन करना है।
वहीं, मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने इसे “शांति और विकास के नए युग की शुरुआत” बताया। उन्होंने कहा, “नक्सलवाद अब अपनी आखिरी सांसें गिन रहा है। सरकार हर मोर्चे पर उसे परास्त कर रही है।”
हथियारों का सबसे बड़ा सरेंडर
सरेंडर करने वाले नक्सलियों ने 19 AK-47 राइफलें, 23 INSAS राइफलें, 17 SLR, एक INSAS LMG, 11 BGL लॉन्चर, 4 कार्बाइन, 36 .303 राइफलें, 41 बारह-बोर बंदूकें और एक पिस्टल समेत भारी मात्रा में हथियार और गोला-बारूद सौंपे। इससे सुरक्षा बलों को बड़ी राहत मिली है।
विकास की राह पर अबूझमाड़
कभी नक्सल गतिविधियों के कारण आम लोगों के लिए भय का पर्याय रहा अबूझमाड़ अब विकास की मुख्यधारा से जुड़ने जा रहा है। यहां सड़कें, स्कूल और अस्पताल बनाने की दिशा में सरकार तेजी से काम शुरू करने की तैयारी में है।
सरकार की पुनर्वास नीति के तहत आत्मसमर्पण करने वाले सभी नक्सलियों को आर्थिक सहायता, रोजगार प्रशिक्षण, आवास, सुरक्षा और उनके बच्चों की शिक्षा जैसी सुविधाएं दी जाएंगी। उद्देश्य है कि वे समाज में लौटकर सामान्य और सम्मानजनक जीवन जी सकें।
इस ऐतिहासिक आत्मसमर्पण ने स्पष्ट कर दिया है कि छत्तीसगढ़ नक्सलवाद की समाप्ति की ओर निर्णायक कदम बढ़ा चुका है और अब बस्तर में केवल शांति और विकास की आवाज़ गूंजेगी।



