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हाउसिंग बोर्ड को खरीदारों का इंतजार: शहरों से दूर बने मकान 30% छूट के बाद भी नहीं बिके, 1700 से अधिक मकान अब भी खाली

रायपुर। छत्तीसगढ़ सरकार की महत्वाकांक्षी अटल आवास योजना के अंतर्गत बनाए गए कम कीमत वाले आवास भी आमजन की पकड़ से दूर होते नजर आ रहे हैं। प्रदेश के कई जिलों में हजारों सस्ते मकान खाली पड़े हैं, जिन्हें बेचने में गृह निर्माण मंडल को कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।

प्रदेश के दूरस्थ और अर्ध-शहरी इलाकों में तैयार किए गए इन मकानों की कीमतें जहाँ ₹6.75 लाख से शुरू होकर ₹31 लाख तक जाती हैं, वहीं ग्राहकों की संख्या उम्मीद से काफी कम है। बीजापुर में 143, धमतरी में 88 और नवापारा में 122 मकान अब भी खाली हैं। राजिम में 53, बालोद में 118 और भानुप्रतापपुर में 60 मकान अभी तक बिक नहीं सके हैं। इन सभी स्थानों पर मकानों की कीमतें तुलनात्मक रूप से कम हैं, फिर भी खरीदार सामने नहीं आ रहे।

इस विफलता के पीछे कई वजहें सामने आ रही हैं। सबसे बड़ी समस्या इन क्षेत्रों में आवश्यक बुनियादी सुविधाओं की कमी है। अधिकांश परियोजनाएं ऐसी जगहों पर स्थित हैं जहाँ न तो रोजगार के पर्याप्त अवसर हैं और न ही अस्पताल, स्कूल या बाजार जैसी सुविधाएं। इसके अलावा, सार्वजनिक परिवहन की अनुपलब्धता भी एक अहम कारण है, जिससे रोजमर्रा की आवाजाही मुश्किल हो जाती है।

स्थानीय लोगों का मानना है कि मकान की कीमतें भले ही कम हों, लेकिन जब तक क्षेत्र में जीवन यापन के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ नहीं बनेंगी, तब तक खरीदार आकर्षित नहीं होंगे। गृह निर्माण मंडल के अधिकारी लगातार प्रचार-प्रसार और छूट योजनाओं के माध्यम से बिक्री बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं, परंतु जमीनी हकीकत यह है कि केवल छूट देने से बात नहीं बन रही।

विशेषज्ञों का सुझाव है कि सरकार को सिर्फ मकान बनाकर छोड़ देने की बजाय, इन परियोजनाओं को एक संपूर्ण आवासीय कॉलोनी के रूप में विकसित करना होगा, जिसमें सड़क, नाली, पानी, बिजली, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी आवश्यक सेवाएं पहले से सुलभ हों। जब तक इन इलाकों को रहने लायक नहीं बनाया जाएगा, तब तक अटल आवास जैसी लोकहितैषी योजना भी आमजन से जुड़ नहीं पाएगी।

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Kailash Jaiswal

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