नई दिल्लीः राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प अगले 13 दिनों में व्हाइट हाउस का नियंत्रण नए राष्ट्रपति जो बिडेन को सौंपने वाले हैं, ऐसा उन्होंने वादा किया है। निवर्तमान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा कि 20 जनवरी को जो बिडेन को अनुशासित रूप से सत्ता का हस्तांतरण होगा। ट्रम्प की टिप्पणी अमेरिकी कांग्रेस के संयुक्त सत्र के बाद औपचारिक रूप आई और इस बात ने अगले अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में बिडेन के इलेक्टोरल कॉलेज की जीत को प्रमाणित किया।
इस बीच, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के हजारों नाराज समर्थकों ने अमेरिकी कैपिटल पर धावा बोल दिया और पुलिस से भिड़ गए, जिससे उनके कई समर्थक हताहत और कई घायल हुए। इन उपद्रवियों ने राष्ट्रपति चुनाव में जो बिडेन की जीत की पुष्टि के लिए एक संवैधानिक प्रक्रिया को बाधित किया।
नकाबपोश प्रदर्शनकारियों द्वारा किए गए हंगामे के बाद पुलिस के पास भीड़ को नियंत्रित करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ा। सैकड़ों प्रदर्शनकारियों ने सुरक्षा भंग कर दी और बुधवार को कैपिटल भवन में प्रवेश किया, जहां कांग्रेस के सदस्य निर्वाचक मंडल के वोटों की गिनती और प्रमाणित करने की प्रक्रिया से गुजर रहे थे।
हाउस और सीनेट और पूरे कैपिटल को लॉकडाउन के तहत रखा गया था। उपराष्ट्रपति माइक पेंस और सांसदों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया।
ट्रम्प, जिन्होंने पहले अपने समर्थकों को कैपिटल में जाने के लिए प्रोत्साहित किया, ने उन्हें कानून का पालन करने और हिंसक झड़प के बाद घर वापस जाने का आग्रह किया।
ट्रम्प ने ट्विटर पर पोस्ट किए गए एक वीडियो संदेश में कहा, ‘‘यह एक कपटपूर्ण चुनाव था, लेकिन हम इन लोगों के हाथों में नहीं खेल सकते। हमें शांति रखनी है। इसलिए घर जाना है।’’ माइक्रो ब्लॉगिंग साइट ने बाद में वीडियो और कुछ ट्वीट्स को हटा दिया जिसमें ट्रम्प अपने समर्थकों के कार्यों का बचाव करते दिखाई दिए।
ट्विटर ने भी राष्ट्रपति ट्रम्प के खाते को पहली बार 12 घंटे के लिए लॉक कर दिया और चेतावनी दी कि वह स्थायी रूप से बंद हो सकते हैं। नए चुने गए राष्ट्रपति बिडेन ने कहा कि वह अमेरिका को ‘‘इस तरह उपद्रव’’ को देखकर वह हैरान और दुखी हैं।
नई दिल्लीः पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी सऊदी अरब से कश्मीर पर अपमान का अनुभव करने के बाद एक दिन की चीन यात्रा के लिए हेनान पहुंचे हैं। कुरैशी ने इसे ‘आयरन ब्रदर्स’ के बीच रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करने के उद्देश्य से एक ‘बहुत महत्वपूर्ण’ यात्रा बताया है।
इस यात्रा के दौरान, कुरैशी चीनी विदेश मंत्री वांग यी से मुलाकात करेंगे। हेनान वही जगह है जहां चीन ने पनडुब्बियों का एक बड़ा आधार बना रखा है।
कुरैशी ने कहा, ‘‘इस यात्रा का उद्देश्य पाकिस्तान के राजनीतिक और सैन्य नेतृत्व के लक्ष्यों को दिखाना है।’’ हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तानी विदेश मंत्री सैन्य सहयोग सहित तीन सूत्री योजना पर चीन पहुंचे हैं।
इससे पहले, पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने रक्षा सहयोग और क्षमता निर्माण के लिए पिछले साल अगस्त में पाकिस्तान सेना के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे।
पाकिस्तानी और चीनी सेनाओं को एक साथ लाने की कोशिश
पाकिस्तान सेना पीएलए के साथ अपने संबंधों को मजबूत करना चाहती है और एक संयुक्त सैन्य आयोग का गठन करना चाहती है। इस योजना के पीछे मकसद यह है कि दोनों सेनाओं के बीच रणनीतिक फैसले लिए जा सकते हैं। यह पीएलए और पाकिस्तान सेना को एक साथ लाएगा। इसके अलावा, इमरान खान सरकार चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के दूसरे चरण को तेज करने के लिए चर्चा करेगी।
मामले से जुड़े लोगों का कहना है कि कुरैशी चाहते हैं कि चीन सिंध, पाक अधिकृत कश्मीर और गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र में बुनियादी ढांचे में सुधार करने में मदद करे। पीओके और गिलगित दोनों पर पाकिस्तान का कब्जा है, लेकिन भारत इस क्षेत्र पर अपना दावा करता है। चीन लगभग 60 अरब डॉलर का निवेश करके पाकिस्तान से चीन के लिए सड़क और रेलवे लिंक का निर्माण कर रहा है। इसके जरिए चीन का शिनजियांग प्रांत पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट से जुड़ जाएगा।
ऐसा माना जा रहा है कि चीन और पाकिस्तान के बीच इस चर्चा में भारत का मुद्दा प्रमुखता से उभर सकता है। दोनों देशों के विदेश मंत्री ऐसे समय में बैठक कर रहे हैं जब दोनों एलओसी और कश्मीर के संबंध में अपने निचले स्तर पर पहुंच गए हैं। कहा जा रहा है कि चीन ने पाकिस्तान को आश्वासन दिया है कि कश्मीर के पूरे मुद्दे को इस्लामाबाद के साथ समन्वित किया जाएगा। इमरान खान सरकार चाहती है कि चीन एक कदम और आगे बढ़े और मामला अगले महीने संयुक्त राष्ट्र महासभा सत्र में ले जाए। अब तक केवल तुर्की और मलेशिया ने ऐसा किया है।
नेपाल में अपनी पकड़ को और मजबूत करने के लिए पाकिस्तान चाहता है कि चीन से नेपाल तक उसके माल के लिए एक परिवहन गलियारा हो। नेपाल ने 20 बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए पिछले साल चीन के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। इसके तहत, हिमालयी क्षेत्र में सभी मौसम वाली सड़कें और सुरंगें बनाई जानी हैं। यह यात्रा ऐसे समय में हुई है जब कश्मीर पर कुरैशी की धमकी के बाद सऊदी अरब के साथ पाकिस्तान के संबंध बिगड़ गए हैं। सऊदी अरब के कर्ज को चुकाने के लिए पाकिस्तान को चीन से उधार लेना पड़ा है।
sabhar
9 महीने की संवादहीनता और तल्खी के बीच नेपाल की अकड़ ढीली पड़ती नजर आ रही है। संबंध सुधारने की दिशा में कदम बढ़ाते हुए दोनों देशों के अधिकारी नेपाल में भारत पोषित परियोजनाओं को लेकर 17 अगस्त को समीक्षा बैठक करेंगे।
नेपाल-भारत निरीक्षण तंत्र की यह 8वीं बैठक दोनों देशों के मध्य हाल के सीमा विवाद से उत्पन्न तल्ख तेवरों में नरमी की उम्मीद के तौर पर देखी जा रही है। 9 माह बाद हो रही बैठक 17 अगस्त को काठमांडू में प्रस्तावित है। काठमांडू पोस्ट के अनुसार नेपाल के विदेश मंत्रालय ने इस बैठक की पुष्टि की है।
विदेश मंत्री प्रदीप ग्यावली ने कहा,' हमारे पास बातचीत के अलावा विकल्प नहीं है।' उन्होंने आगे कहा,' सीमा विवाद को लेकर हम अपने सभी संबंधों को बंधक बनाकर नहीं रख सकते हैं।'
तंत्र की बैठक का दौर प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल की 2016 में भारत यात्रा के बाद स्थापित हुआ। इसका मकसद आपसी परियोजनाओं के क्रियान्वयन और समयसीमा के भीतर इन्हें पूरा करने के लिये आवश्यक कदम उठाना था।
नेपाल की तरफ से बैठक की अगुआई विदेश सचिव शंकर दास बैरागी करेंगे। भारतीय दल का नेतृत्व नेपाल में भारत के राजदूत विनय मोहन क्वात्रा करेंगे। यह बैठक हालांकि भारत पोषित परियोजनाओं की समीक्षा के लिए हो रही है, लेकिन अधिकारियों और राजनायिकों का कहना है कि इसे दोनों देशों के बीच फिर से बातचीत शुरू होने के रूप में देखा जा रहा है।
नई दिल्लीः ड्रेगन की जालसाजी पर भारत चीन को चारों तरफ से घेरने का मन बना चुका है। इसीलिए भारत उसे सामरिक और आर्थिक दोनों मोर्चों पर घेर रहा है। पूर्वी लद्दाख में जो हरकत चीन ने की, वो शर्मनाक है। उसके बाद भी वो अपनी नापाक हरकतों से बाज नहीं आ रहा। लेकिन भारत द्वारा अपने 59 ऐप्स पर बैन लगाने के बाद से चीन के स्वर कुछ मद्धम पड़े हैं। बहरहाल, भारत ने ड्रेगन की चालाकी का जवाब कूटनीतिक तरीके से देते हुए हांगकांग (HongKong) में चीन के नए सुरक्षा कानून पर इशारों-इशारों में सवाल खड़े किए और साथ ही साथ चीन को खरी-खोटी भी सुना दी।
बुधवार को जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) में भारत ने कहा कि हांगकांग को विशेष व्यवस्थापकीय क्षेत्र (Special administrative region) बनाना चीन का घरेलू मसला है, लेकिन भारत इन घटनाओं पर करीब से नजर रखे हुए है। जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि राजीव चंदर ने कहा, ‘‘हम हाल की इन घटनाओं पर चिंता जताने वाले कई बयान सुन चुके हैं। हमें उम्मीद है कि संबंधित पक्ष इन बातों का ध्यान रखेंगे और इसका उचित, गंभीर और निष्पक्ष समाधान करेंगे।’’ हालांकि भारत ने अपने बयान में चीन का नाम लेने से बचता दिखाई दिया।
एनबीटी के हवाले से भारत का यह बयान उस समय आया, जब दुनिया में मानवाधिकार की स्थिति पर चर्चा चल रही है। भारत पहली बार हांगकांग के मुद्दे पर बोला है। वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर चीन के साथ गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प के बाद भारत का यह बयान आया है। दोनों देशों के बीच एक महीने से ज्यादा वक्त से पूर्वी लद्दाख में तनाव बना हुआ है।
अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो के बयान वाले दिन ही भारत का भी बयान आया है, जिसमें अमेरिकी विदेश मंत्री ने भारत में 59 चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध का खुलकर समर्थन किया। पोम्पियो ने कहा था कि भारत का क्लीन ऐप नजरिये से उसकी संप्रभुता, अखंडता और राष्ट्रीय सुरक्षा मजबूत होगी।
सूत्रों के अनुसार, अमेरिका चाहता है कि भारत हांगकांग के मुद्दे पर चीन के खिलाफ बोले। चीन के नए कानून से हांगकांग के निवासियों के मानवाधिकार उल्लंघन की बात कही जा रही है। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में 27 देशों ने चीन से हांगकांग में लागू किए गए नए कानून पर फिर से विचार करने को कहा है।
भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया में केवल भारत ही एक ऐसा देश है जिसने हांगकांग के मुद्दे पर अभी तक कुछ नहीं बोला है। ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा ने चीन के नए कानून की खुलकर आलोचना की है। जापान ने भी हांगकांग की आजादी का समर्थन किया है। भारत एकमात्र ऐसा देश है जिसने इस मुद्दे पर कोई सार्वजनिक बयान नहीं दिया।
सामरिक मामलों के विशेषज्ञ ब्रह्म चलानी ने ट्वीट कर कहा, ‘‘चीन हांगकांग में यूएन संधि का उल्लंघन कर रहा है लेकिन भारत ने इस मुद्दे पर कुछ भी नहीं कहा। चीन में मुस्लिमों पर हो रहे अत्याचार पर भी भारत ने कोई बयान नहीं दिया। एससीएस (SCS) में चीन के कार्यों पर भारत चुप रहा। लेकिन चीन ने जम्मू-कश्मीर का मसला यूएनएससी (UNSC) में उठाया।’’
नई दिल्लीः ट्रम्प प्रशासन ने सोमवार को वर्तमान कैलेंडर वर्ष में सभी एच-1बी और एच-4 सहित विदेशियों के लिए, नए प्रवासियों और निलंबित वीजाधारकों के लिए ‘ग्रीन कार्ड’ जारी करने पर रोक लगा दी। यह रोक उन वीजाधारकों के लिए नहीं जो पहले से ही अमेरिका में रह रहे हैं। ऑप्शनल प्रैक्टिकल ट्रेनिंग (OPT) के तहत जो विदेशी छात्र अमेरिका में स्नातक होने के बाद योग्य होगें, वो छात्र भी इस समस्या से प्रभावित नहीं होंगे। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के इस फैसले से भारत समेत दुनिया के आईटी प्रोफेशनल को बड़ा झटका लगेगा।
डोनाल्ड ट्रंप ने सोमवार को कहा कि अमेरिका में रहने वाले उन लोगों की मदद करने के लिए यह निर्णय आवश्यक था। इसका उद्देश्य उन स्थानीय वर्कस को प्रोटेक्ट करना है जो कोविड-19 के फैलने के कारण बेरोजगारी का सामना कर रहे हैं। उन्होंने कहा, ट्रम्प ने एक बयान में कहा, ‘‘हमारे पास एक आव्रजन प्रणाली बनाने का नैतिक कर्तव्य है जो हमारे नागरिकों के जीवन और नौकरियों की रक्षा करता है। यह निलंबन दिसंबर तक प्रभावी रहेगा।’’
ट्रंप का ये ऐलान नवंबर में होने जा रहे राष्ट्रपति चुनावों के मद्देनज़र देखा जा रहा है। राष्ट्रपति चुनावों से ठीक पहले ये ऐलान करते हुए ट्रंप ने विभिन्न व्यापारिक संगठनों, कानूनविदों और मानवाधिकार निकायों द्वारा आदेश के बढ़ते विरोध की अनदेखी की है।
एच-1बी वीजा पर रोक 24 जून से लागू होगी। इससे बड़ी संख्या में भारतीय आईटी पेशेवरों के प्रभावित होने की संभावना है। अब उन्हें स्टैम्पिंग से पहले कम से कम इस साल के खत्म होने का इंतजार करना पड़ेगा। ये कदम उन भारतीय आईटी पेशेवरों को बड़ी संख्या में भी प्रभावित करेगा जिनका एच-1बी वीजा खत्म होने वाला है और वो उसे रिन्यू कराना चाहते हैं।
आज तक के हवाले से डोनाल्ड ट्रंप के इस ऐलान से दुनियाभर से अमेरिका में नौकरी करने का सपना देखने वाले लाखों लोगों के लिए परेशानी का सबब बन सकता है। यहां बता दें कि अमेरिका में काम करने वाली कंपनियों को विदेशी कामगारों को मिलने वाले वीजा को एच-1बी वीजा कहते हैं। इस वीजा को एक तय अवधि के लिए जारी किया जाता है।
क्या है एच-1बी वीजा
एच-1बी वीजा एक गैर-प्रवासी वीजा है। अमेरिका में कार्यरत कंपनियों को यह वीजा ऐसे कुशल कर्मचारियों को रखने के लिए दिया जाता है जिनकी अमेरिका में कमी हो। इस वीजा की वैलिडिटी छह साल की होती है। अमेरिकी कंपनियों की डिमांड की वजह से भारतीय आईटी प्रोफेशनल्स इस वीजा को सबसे ज्यादा संख्या में हासिल करते हैं।
A News Edit By : Yash Kumar Lata
उन्होंने कहा, डब्ल्यूएचओ को फिलहाल और भविष्य में कोरोना वायरस से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय का नेतृत्व करते रहना चाहिये। इसके लिये सभी के सहयोग की बहुत ज्यादा जरूरत है.