"हरदी" का विच्छेद करेंगे तो थोड़े सटीक उत्तर मिलेंगे 'हर+दी' जबकि "हल्दी" का विच्छेद करने पर आपको 'हल्+दी' की प्राप्ति होगी यह भी हरदी की भांति ही उस क्रिया के निकट है मगर ख्याल रखना यहाँ हल में पूर्ण "ल" नहीं है। सायद इसीलिए हमारे पूर्वज वानप्रस्थ के लिए प्रस्थान करते थे। हरदी और हल्दी चंदन की बात किस क्रिया के लिए बोला जा रहा है यह जानने के लिए केवल इतने से संकेतों के साथ मैं आपको दिमाक खपाने का बड़ा टास्क नही दूंगा; थोड़ा आपको सहयोग मिले इसके लिए एक "क्लू" जरूर देना चाहूंगा।
क्लू: "हरदी और चंदन में कायाकल्प होने के बाद चुनौतियों के साथ बड़ा आनंद है।"
बुद्धि के थोड़े से स्तेमाल करने से ही आपको उत्तर मिल चुका होगा यदि आपको उत्तर मिल चुका होगा तो आगे जरूर पढ़िए; परंतु यदि आपको उत्तर नही मिला है तो रुकिए, फिर वापस जाकर शुरुआत से पढ़िए और समझिए कि इस लेख के माध्यम से किस क्रिया को इंगित किया गया है।
मेरा विश्वास है कि आप समझ चुके होंगे कि मैं "विवाह" के बारे में कह रहा था। इसलिए अब आगे अपना लेख पूर्ण करने का प्रयास करता हूँ....
आपको इस विषय में अधिक विचार करने की जरूरत नहीं है कि आपने उबटन में हरदी से नहाया था कि हल्दी से या आपके उबटन में हल्दी हल्दी नहीं बल्कि हलदी थी? आपके उबटन में चंदन थी कि नहीं यह बात भी महत्वपूर्ण नही, आपने हलदी हरदी या हल्दी से नहाया या नहीं यह भी विवाह के लिए कोई अनिवार्यतः मुद्दा नही है। मगर ख्याल रखना, हल्दी चंदन का लेप शरीर के लिए अत्यंत उपयोगी और आवश्यक औषधि है जिसका उपयोग केवल विवाह के लिए ही नहीं बल्कि जीवन मे जब भी आपको आवश्यक लगे लगाते रहिए आपकी प्रतिरोधक क्षमताओं के लिए लाभदायक होगा। हल्दी आपके शरीर के बाहरी भाग में रहने वाले रोगाणुओं को भी मार सकता है, आपके घांव को भी मिटा सकता है छिपा सकता है और आपको सुंदर काया भी दे सकता है। विवाह के बाद यदि बच्चे भी नाखून से काट दें तो आपके शरीर में घांव नही बनेंगे इसलिए भी हल्दी चंदन के उबटन से नहाते रहिए। शरीर में हल्दी चंदन लगने का अपना बड़ा मजा है यदि इसे आपके जीवन साथी द्वारा लगाया जाए तब तो यह मजा और भी अधिक हो जाएगा। प्रयास करिए कि उबटन लगाने की मजबूरी न हो, उबटन आपके साथी लगाए तो अच्छी बात है मगर साथी के कारण लगाना पड़े तो आप दोनों ही नहीं बल्कि पूरे परिवार और समाज के लिए हानिकारक होगा।
आपके विवाह के लिए तैयार किए गए उबटन चंदन या चंदन पाउडर के योग से बना था या नहीं यह भी महत्वपूर्ण नहीं है मगर आपके आचरण में चंदन के गुण का होना अत्यंत आवश्यक है। यदि आपके जीवन में, आपके आचरण में, आपके व्यवहार में चंदन का गुण न हो तो आपके जीवन मे लू लग जाएंगे फिर तो आपको हर क्षण ख्याल रखना पड़ेगा कि कहीं कोई बवंडर न आ जाये, कोई बीड़ी या सिगरेट पीकर ठूठी या बिना बुझे माचिस की तीली आपके आसपास न फेक दे। यदि ऐसा हुआ तो आपका पूरा जीवन तबाह हो सकता है।
जब आपने शुरुआती लेख पढ़ा तो आपको व्यंग पढ़ने में चाहे मजा आया हो या फिर चाहे गुस्सा, मगर "लॉ ऑफ बेजाकब्जा" के कारण आपको हर+दी जाती है; जबकि आपके संकट और उलझनों के लिए हल+दी जाती है शर्त केवल इतनी सी है कि आपके आचरण में चंदन का गुण हो।
अंत में, अपने उबटन को हलदी और चंदन के योग से तैयार की गई प्रमाणित करिए, मुस्कराइए, हँसिए मगर खुश रहिए। हरदी और हल्दी का भी बड़ा मजा है केवल परंपरा के निर्वाह के लिए नहीं, जीवन को एन्जॉय करने के लिए विवाह करिए और चुनौतियों के साथ जीने का लुफ़्त उठाएं। विवाह कर चुके हैं तो बधाई हो नहीं किए हैं तो तैयार हो जाइए हलदी चंदन के योग से तैयार उबटन से नहाने के लिए, आप अपने पसंद के अनुसार लेप में दूध, दही, घी और मीठे गुड़ या शक्कर भी मिला लीजिए तब भी कोई बात नहीं मगर नमक मिर्च मिलाने की कोशिश कतई मत करना। सब्जी और सलाद में शामिल संतुलित मात्रा की नमक और मिर्च आपके सुखमय जीवन के लिए पर्याप्त रहेंगे।
HP Joshi
चना के पेड़ बनाके, तोला नई चढ़ावत हंव।।
गुरतुर बोली बतरस म, तोला नई फसांवत हंव।
मानले संगी मोर बात ल, सत् धरम के रस्ता ल बतावत हव।।1।।
ओ दिन के सियानी गोठ तोला मैं बतावत हंव।
आगी खाए ल घलो संगी, तोला नई सिखावत हंव।।
‘‘मनखे मनखे एक समान’’ भेद ल बतवात हंव।
‘‘जम्मो जीव हे भाई बरोबर’’ गियान अइसने सिखावत हंव।।2।।
ओ दिन के सियानी गोठ तोला मैं बतावत हंव।
‘‘शिक्षा ग्रहण पहिलि’’ करे बर मनावत हंव।।
गंजा दारू छोडव संगी, शाकाहार बनावत हंव।
बैर भाव म कांहि नइहे, मया के बात सिखावत हंव।।3।।
ओ दिन के सियानी गोठ तोला मैं बतावत हंव।
एक घांव मोर संग चलव संगी, अइसे गोहरावत हंव।।
आडम्बर, अमानुषता अउ भेदभाव ल मनखे ले मिटावत हंव।
गौतम बुद्ध, गुरूनानक अउ पेरियार संग, दोसती करावत हंव।।4।।
ओ दिन के सियानी गोठ तोला मैं बतावत हंव।
कबीर दोहा के संग ओशो घलो के बिचार ल समझावत हंव।।
भगवान बिरसा मुण्डा जइसे लडे ल सिखावत हंव।
"भारत के संविधान सच्चा धरम" ऐहि बात बतावत हंव।।5।।
ओ दिन के सियानी गोठ तोला मैं बतावत हंव
उबड़ खाबड़ नहीं, पक्का रसदा तोला धरावत हंव
न्याय सबका अधिकार है इसलिए जो न्यायालय का फैसला आया है उसके खिलाफ जाकर अन्याय नहीं करेंगे।
चाहे हम हिन्दू हैं, चाहे हम मुस्लिम हैं, चाहे हम ईसाई हैं या फिर चाहे हम अन्य भारतीय धर्म के अनुयाई।
हिंसा किसी भी शर्त में बेहतर विकल्पन नहीं हो सकता और न तो धर्म हिंसा को आदर्श के रूप में स्वीकार सकता है। अहिंसा में ही धर्म का सर्वोच्चता और महानता निहित है इसलिए अयोध्या में न्याय का समर्थन समस्त देशवासी ही नहीं वरन् पूरे विश्व के मानव समूदाय का परम कर्तव्य है।
अयोध्या मसले में मानव-मानव एक समान, जम्मो जीव हे भाई बरोबर और वसुधैव कुटुम्बकम से प्रेरित होने की जरूरत है। इन विचारधारा से प्रेरित होना भारत के महानता का परिचायक होगा अन्यथा देश में पैदा होने वाले अशांति और हिंसा हमें बर्बर मानव के उपाधि से ही सम्मानित करेगी।
आइये न्याय का सांथ दें, माननीय सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का सम्मान करेें।
तोरन द्वार सजाएंगे,
नए वस्त्र आभूषण लेकर
दीप पर्व मनाएंगे ।
पाक कला से अपनी अब हम
रसोई में रंगत लाएंगे
मीठे खारे सारे व्यंजन
मिलकर खूब बनाएंगे ।
धूप दीप और रोली बंदन
अगर कपूर घर लाएंगे,
आमपत्र से कलश सजाकर
आसान चौक पुराएंगे ।
श्री गणेश की कर पूजा
माँ लक्ष्मी को मनाएंगे,
श्री कुबेर का ध्यान धरेंगे
विष्णु जी को रिझाएंगे ।
खुशियों की फूलझड़ी जलाकर
प्रेम के दीप जगाएंगे,
अपने और पराए संग हम
दीप महोत्सव मनाएंगे ।
स्वर्ण लता राजेश त्रिवेदी
उक्त जानकारी राज्य शैक्षिक अनुसंधान परिषद शंकर नगर रायपुर में आयोजित तृतीय लिंग समुदाय के प्रति संवेदनशील जागरूकता और समन्वय कार्यक्रम में दी गई l जहां एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया था l वही लोक शिक्षण संचालनालय की सहायक संचालक मृदुला चंद्राकर ने कहा कि इस तरह रामायण, महाभारत जैसे अन्य प्राचीन धर्म में किन्नरों की स्थिति प्रतिष्ठित बताई गई है l
लेकिन वर्तमान युग में हमारे समाज में व्याप्त तृतीय लिंग की मनोदशा बेहद विचारणीय है, सोचनीय है l आज तृतीय लिंग का एक छोटा सा वर्ग अपनी दयनीय स्थिति से निजात पाने प्रयासरत है l जो सरहानीय एवं प्रशंसनीय है l उन्होंने बताया कि इस कार्यक्रम में प्रतिभागियों के साथ-साथ कुछ अतिथि तृतीय लिंग के व्यक्ति विशेष आमंत्रित किए गए थे l जहां उन्होंने अपने अनुभव साझा किए l
क्या आप जानते है चांद का कोई धर्म नहीं होता और ना ही चांद किसी एक धर्म तक सीमित होता है। अलग अलग धर्मों में चांद का अपना एक महत्व होता है। हिंदू धर्म में चांद को चंद्र देवता के रूप में मानते है। वहीं मुस्लिम धर्म में ईद का त्योहार चांद पर आधारित होता है।
चांद सभी के लिए समानता की भावना रखता है। हमारे देश में कई ऐसे त्योहार है जो चांद पर आधारित है। इन व्रत त्योहारों की पूजा चांद के दर्शन करने और अर्ग देने के बाद ही संपन्न मानी जाती है।
चांद पर आधारित हैं हिंदू धर्म के ये त्योहार
हिंदू धर्म में करवा चौथ को महिलाओं का एक बेहद महत्वपूर्ण व्रत माना जाता है। जिसे महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए रखती है। यह व्रत पूरी तरह से चांद पर आधारित है। इस व्रत में चौथ माता की पूजा के बाद रात को चांद के दर्शन किए जाते है इसके बाद ही ये व्रत संपन्न होता है। वहीं हिंदू धर्म में गणेश चतुर्थी का चांद देखना वर्जित माना जाता है। इसके पीछे एक पौराणिक मान्यता है।
जिसके मुताबिक एक बार चांद को गणेश जी ने श्राप दिया था कि जो भी चतुर्थी के दिन तूझे देखेगा उस पर कलंक लग जाएगा। इसके बाद से ही लोग गणेश चतुर्थी के दिन चांद के दर्शन नहीं करते हैं। हिंदू धर्म में चौथ का व्रत, होई अष्टमी, करवा चौथ पूर्णिमा व्रत, कजरी तीज, जैसे कई व्रत त्योहार हैं जो चांद पर आधारित हैं।
चांद और हिजरी कैलेंडर
हिंदू धर्म के अलावा मुस्लिम धर्म में भी चांद का भी काफी महत्व है। आपको जानकर हैरानी हो मगर मुस्लिम धर्म में सभी पर्व, त्यौहार मनाने से पहले चांद का दीदार करते हैं। इसे मानने के पीछे का प्रमुख कारण मुसलमानों का कैलेंडर माना जाता है जिसे हिजरी कैलेंडर कहा जाता है।
जिसकी शुरुआत 622 ईस्वी में बताई जाती है। हिजरी कैलेंडर चंद्र गणना पर आधारित है। कहा जाता है कि रसूल ने इसी दौरान मक्का से मदीना के बीच यात्रा करते हुए हिजरत की शुरुआत की थी। चूंकि मुसलमानों के कैलेंडर का आधार चांद ही है इसीलिए मुस्लिम धर्म में चांद का जरूरी महत्व है।
चंद्रग्रहण का है खास महत्व
धरती से चांद भले ही करोड़ो मीलों दूर है मगर इसका प्रभाव इसी बात से लगाया जा सकता है कि हिंदू धर्म में ग्रहण का बड़ा महत्व बताया गया है। ग्रहण का प्रभाव धरती पर भी पड़ता है। चंद्रग्रहण से पहले सूतक काल लग जाता है। आपको बता दें कि चंद्रग्रहण का सूतक 9 घंटे का होता है।
जिसमें मंदिरों में भगवान के कपाट नहीं खुलते सूतक काल में घर, मंदिरों में पूजा भी नहीं की जाती, सूतक काल में शुभ कार्य नहीं होते हैं। सूतक काल में ग्रहण का प्रभाव जीव-जंतुओ, खाद्य सामग्री पर पड़ता है।
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इससे आगे बढ़कर बात करना ज्यादा जरूरी है... हाल में ही प्रदेश के स्कूलों में एक भाषा विशेष को पढ़ाए जाने की वकालत शुरू हुई... वकालत इस लिए लिख रहा हूं क्योंकि मामला हाइकोर्ट तक पहुंचा है... आधार यहां भी संख्याबल ही.. जिसके आगे सरकारें नतमस्तक हैं... अब जरा सोचिए... देश में हिंदी हर प्रदेश में अनिवार्य विषय हो इसकी वकालत क्यों नहीं हो रही... खैर प्रदेश में ही पिछले15 सालों में छत्तीसढ़ी कामकाज और स्कूलों में विषय के रुप में क्यों लागू नहीं हो पाई.. क्या इनका संख्याबल कम है... जी.. नहीं.. दरअसल मसला एक तबके विशेष को साधने का है... और जब नगरीय निकाय चुनाव सामने हों तो यह राजनीतिक पार्टियों के लिए बहुत जरूरी हो जाता है। लेकिन क्या ऐसा करने से सामाजिक सुचिता नहीं बिगड़ेगी... इस बात से किसी को क्या लेना देना.. कल दूसरे तबके के लोग भी हैं जो दो लाख से ज्यादा हैं वे भी किसी विशेष मांग को लेकर खड़े हो जाएंगे... जरा पड़ोसी राज्य के सीएम से पूछ लीजिए... वे छत्तीसगढ़ से भाषा विशेष को पढ़कर निकले यहां के किसी मूलनिवासी व्यक्ति को ओडिशा में नौकरी देंगे... तो फिर छत्तीसगढ़ी का क्या होगा... भूल जाना चाहिए..
बात इन सबसे बहुत ऊपर उठकर सोचने की है...दरअसल लोकतंत्र में संख्याबल को कुछ लोगों ने गलत तरीके से परिभाषित कर दिया है... संख्याबल किसी एक समुदाय विशेष की संख्या से तय नहीं होता.. दरअसल यह मामला सहयोग और लोकप्रियता का है... और सच कहूं तो पसंद और नापसंद का है... अगर ऐसा नहीं तो कोई बुद्धजीवी ही मुझे बता दे कि पिछड़ा वर्ग बाहुल्य क्षेत्र से उसी वर्ग का प्रत्याशी चुनाव क्यों हार जाता है... कई बार तो सबसे कम संख्याबल होने के बावजूद उस क्षेत्र से किसी दूसरे ही तबके का नेता चुन लिया जाता है। तो क्या विधानसभावार आरक्षण बेमानी नहीं है। दरअसल तय यह होना चाहिए कि इस प्रदेश में इस तबके का संख्याबल इतना है इन्हें राजनीतिक पार्टी को हर हाल में इतने पदों पर उम्मीदवारी देनी ही होगी... मतलब पार्टीवार उम्मीदवारी में आरक्षण हो.. न कि विधानसभा रिजर्व की जाए... फिर उम्मीदवारों का चयन कर राजनीतिक कौशल परीक्षण आजमाया जाए... आधार है भी कुछ ऐसा ही...थोड़ा बहुत संविधान मैंने भी पढ़ा है... और मैं यही समझ सका हूं...
अब सोचना यह है कि लोकतंत्र की नुमाइंदगी कर रहे लोगों ने भला संख्याबल का जो गणित पढ़ाना शुरू किया है वह सफल कहां तक है... जिस समाज का संख्याबल ज्यादा उसकी चलेगी... तो फिर सरकार को जनसंख्या नियंत्रण और परिवार नियोजन जैसी योजनाओं पर खर्च होने वाले अरबों रुपयों की बर्बादी बंद कर देनी चाहिए..साथ ही बच्चे दो ही अच्छे.. हम दो हमारे दो.. काबिल बच्चा एक ही अच्छा जैसे नारों पर भी रोक लगा ही देना चाहिए... क्योंकि जब लोकतंत्र में संख्याबल ही सबकुछ तय करेगा.. तो हर सामाजिक तबका संख्याबल बढ़ाने पर ही जोर रखे... भुखमरी... बेरोजगारी... आवास.. शिक्षा...स्वास्थ्य.. यह सरकार देखे... हम तो संख्या में ज्यादा होना चाहेंगे... देश का फिर चाहे जो हो...
जरा सोचिएगा... अगर सोच ऐसी बनने लगी तो हालात क्या होंगे... फिलहाल, मैं सच कहूं.. तो संख्याबल बढ़ाने की ही सोच रहा हूं... आप क्या करेंगे... यह आप सोचिए....
आज सारी दुनिया महिला दिवस मना रही है और लड़की होने के नाते शायद मुझे भी ये दिन मनाना चाहिए पर मै नहीं मना पा रही इस दिन को | मन में सवालों का बवंडर घूम रहा है की आज मै लड़की होने पर गर्व करूँ या लड़की होने पर उदास होऊं? भगवान् ने इतनी खुबसुरत चीज बनाई है वो है औरत ,जिससे ये सारी दुनिया बनी है | ये ना हो तो इन्सान जाती ही ना हो | हम औरत को कितने ही रूपों में देखते है कभी माँ, बहन, नानी, चाची, पत्नी , बेटी, भाभी और भी ना जाने कितने रूप है औरत के | यहाँ तक की औरत को पूजा भी जाता है सारे स्थानों में माँ का स्थान सबसे ऊपर रखा गया है | तो आज सबसे ज्यादा रेप क्यूँ हो रहें है, पुरुष को ये सब करते समय उसे ध्यान क्यूँ नहीं आता की वो भी इसी औरत से बना है जिस माँ की कोख से पैदा हुआ है उसी औरत के साथ रेप कैसे कर सकता है ?भले ही वो जिसके साथ गलत कर रहा है वो बेशक उसकी माँ , बहन, बेटी ना हो पर है तो उन्ही मेसे एक ? फिर भी उसकी रूह नहीं कापती किसी औरत के साथ गलत करते वक्त ?
आज मेरे इस आर्टिकल में क्या लिखूं ये समझ नहीं आरहा महिलाओं की तारीफ़ लिखूं या उनके साथ हो रहे अपमान को लिखूं या दूसरों की तरह मै भी महिलाओं की वीरता के किस्से लिखूं ? मै आप सब से एक सवाल पूछना चाहती हूँ की क्या औरत केवल एक दिन के सम्मान के काबिल है ?क्या हमें एक ही दिन औरत का सम्मान करना चाहिय या हर दिन ?कुछ पति ये कह कर इस दिन पत्नियों को आराम देते है या देंगें की आज का दिन आप का है ये आप एक दिन करने का सोच रहे हो तो ये आप हर रोज भी तो कर सकते हो |एक दिन आराम देने और एक दिन गिफ्ट देने से औरत का सम्मान हो जाता है क्या ? क्या है औरत का असली सम्मान ये हमें सोचना चाहिए ?
आज औरतें अपने ही घर में मैह्फुस नहीं है | आज एसा माहौल है की कोई दूर का नहीं बल्कि कोई अपना ही हमारे पर बुरी नजर गडाये रहता है, हम अपनी बच्चियों को भी घर में अपनों के पास छोड़ नहीं सकते | मैने सोशल मीडिया में 26 फरवरी 2018 को उतरप्रदेश के मुजफ्फरनगर एक खबर पड़ी की एक बहन ने अपनी ही 16 साल की बहन को किसी बहाने से एक खाली घर में ले गई जहाँ उसका 22 साल का भाई पहले से ही मौजूद था और जब वो लड़की वहां पहुची तो उसका भाई उसके साथ रेप किया और जो उस लड़की की बहन थी जिसने उसे वहा बहला के लाइ थी वो उसका वीडियो बना रही थी फ़िलहाल ये दोनों भाई बहन फरार है |एक और खबर थी की जो 7 मार्च 2018 कोलकत्ता ही की है जहां एक 3 साल लड़की के साथ एक खाली बस में एक आदमी ने दरिंदागी की जब वो उस लड़की का रेप कर रहा था तो उस लड़की का भाई दरवाजे में खड़े हो कर अपनी बहन को छोड़ देने की मिन्नतें कर रहा था | जब उसने ये सारी बातें अपनी माँ को बताई तो उसकी माँ जब वहां पहुची तो बच्ची के शारीर से खून बह रहा था और जब उस मासूम को अस्पताल ले जाया गया तो उसकी हालत नाजुक बताई है | एसी ही कई खबरे हम रोज अखबार और टेलीविसन में पड़ते और सुनते है | ये सब केवल भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में देखते है की औरत के साथ हमेशा ही गलत होता है |
आज हम बड़े गर्व से कहतें है की आज हम मर्दों के साथ कदम से कदम मिला के चल रहे है पर ये भी सच है की हम कितना भी आगे निकल गयें हों पर आज भी हमारी इज्जत दाव पर लगी रहती है हम आज भी अकेले जाने में अपने आप को सहज महसूस नहीं समझते है और ना ही हमारे घर वाले | अब ये सब पड़ने के बाद आप खुद सोचें की क्या वाकई में हमें इस दिन को सैलीब्रेट करना चाहिए या नहीं ?
आज वक्त है लड़कियों पर हम जो रोक टोक लगाते है वो रोक टोक अब हम लड़कों पर लगायें , उनकी हर बातों पर ध्यान दें की वो क्या कर रहें है, आज लड़कियों को नहीं लड़कों को कहें की शाम के घर से बाहर ना जायें, आधी रात तक बाहर ना रहे क्यूँ की जो भी आज हो रहा है लड़कियों के साथ उसके जिमेदार लड़के ही है और उनकी ये मानसिकता की हम पुरुष हैं कुछ भी कर सकतें है ये हमारी मर्दानगी है और इस सोच को बढावा हमने ही दिया है | हमने ही इन पुरुषों को इतनी छुट दे रखी है की वो कुछ भी करेगा तो हम ही उसे लड़का है करके माफ़ कर देंगें और सारा इल्जाम लड़की पर ही डाल देते है | जब तक इस मानसिकता को नहीं बदलेंगें तब तक लड़कियों के साथ गलत ही होता रहेगा और ये सब कौन बदलेगा ? इन सब को हमने ही बढावा दिया है तो हम ही इसको बदल सकते है अपनी मानसिकता को बदल कर और बच्चों को अच्छी सिख दे कर |
मै आज के दिन की विरोधी नहीं हूँ मैं भी इस दिन को ख़ुशी और गर्व के साथ मनाना चाहती हूँ औरत होने पर घमंड करना चाहती हूँ जो चीज मुझमे है वो पुरषों में नहीं इसपर इतराना चाहती हूँ पर साथ-साथ आप सब को यहीं कहना चाहती हूँ की अपनी सुरक्षा के लिए आत्म रक्षा की शिक्षा हर लड़की को लेनी चाहिए ताकि वो हर जगह अपनी रक्षा खुद कर सके और कोई भी हमारे संस्कार और हमारे पहनावे पर ऊँगली ना उठा सके | हम लोगों को और उनकी सोच को नहीं बदल सकते पर खुद को तो बदल सकतें है |
वर्षा बी गलपांडे
बचपन में हमारे दादा-दादी,नाना-नानी हमें विभिन्न प्रकार की कहानियां सुनाते थे,किस्से सुनाते थे, किवदंतियां सुनाते थे, इसमें यह स्थापित करने की कोशिश होती थी कि एक स्वर्ग होता है और एक नरक होता है तथा यह समझाने की भी कोशिश होती थी कि यदि आप अच्छे काम करेंगे तो स्वर्ग में जाएंगे और गलत काम करेंगे तो नरक में जायेंगे।इसके लिए स्वर्ग में स्थापित आनंद की सारी खूबियों का बखूबी वर्णन किया जाता था और नर्क के अंदर कितने भयंकर कष्ट होते हैं उसका वर्णन करते हुई कहानी सुनाई जाती थी। नतीजन जो कहीं ना कहीं हमारे मन मस्तिष्क में स्वर्ग व नरक की कल्पना स्थापित हो ही जाती है। जिसका असर ताह उम्र इंसान के जीवन मे कम या अधिक बना ही रहता है।
जैसे जैसे हम बड़े होते जाते है समझ बढ़ती है जिससे हममे अपनी तर्क संगत बात लोगो के सामने रखने की क्षमता आने लगती है। एक उम्र के पड़ाव के बाद इंसान को उसका अनुभव ही सीखा जाता है की इस ब्रम्हांड में कोई भी ऐसी जगह प्रकृति के द्वारा स्थापित नहीं है जिसे स्वर्ग और नरक कहा जा सके।
हर इंसान अपने व्यवहार, आचरण, बोलचाल, चाल- चलन और अपनी सोच से ही इस ब्रम्हांड में अपने लिए और अपने समाज के लिए स्वर्ग और नरक स्थापित करता जाता है।
इंसान की जितनी सोच स्वार्थ आधारित होगी उतने ही हम इस पृथ्वी को नरक बनाने के करीब ले जाने के जिम्मेदार होंगे तथा दूसरी ओर हमारी जितनी सोच समाजिक व व्यापक होगी उतने ही हम स्वर्ग को स्थापित करने में भागीदार की भूमिका में होंगे।
इस पृथ्वी के पर्यावरण से ही स्वर्ग और नरक स्थापित होता है। जितना हम अपने जीवन को प्रकृति के करीब रखते हुए पर्यावरण की रक्षा करने का संकल्प अपने दिलों दिमाग में स्थापित कर पाएंगे उतने ही पैमाने में इंसान इस पृथ्वी को स्वर्ग के करीब तथा नरक से दूरी बनाने में सफल होगा।
अपने चारों तरफ हरियाली की चादर, चिड़ियों का चहकना, कोयल की मन मोह लेने वाली आवाज को सुनना, नीलकंठ का दिखना, मोरो को नाचते हुए देखना, रंगबिरंगी फूलो का खिलना और उसकी महक, भौरों की गुंजन,जुगनुओं को जगमगाहट, रंगबिनरंगी तितलियों को उड़ते देखना,पहाड़ियों से पानी को गिरते हुए देखना,झील से,जंगलो से प्राकृतिक सौंदर्य की अनुभूति प्राप्त करना किसे अच्छा नही लगता।
सभी मन से चाहते है ऐसा ही वातावरण अपने चारों तरफ हो,तभी तो ऐसे ही वातावरण की चाहत में इंसान सपरिवार या दोस्तो के साथ जाता है कुछ दिनों की छुट्टियां मानने ,ऐसे ही किसी कल्पनाशील जगह की तलाश कर जहाँ पर वह कुछ दिन प्रकृति के करीब रहकर उसका भरपूर आनंद ले सके,वह भी भारी भरकम पैसों को खर्च कर।
पृथ्वी में बसे हर इंसान को यह सोचना चाहिए जिस प्राकृतिक वातावरण के चाहत के लिए वह भटकता है उसे अपने आसपास भी तो बना सकता है,कम पैसों को खर्च कर, उसके लिए उसे केवल अपनी सोच के साथ अपनी दिनचर्या भी बदलनी होगी तभी जाकर बड़ी कठिन तपस्या के बाद हम सब लोग यकीनन ऐसा ही वातावरण अपने आस पास प्राप्त कर सकते है।
हमेशा सरकार की ओर मुंह नही ताकना चाहिए हमे भी आगे बढ़ कर इस दिशा में कुछ ठोस कदम उठाने होंगे स्वार्थवश ही सही, क्योकि अपने आसपास जो भी वातावरण होगा उसका सीधा असर हमारी जीवन पर ही पड़ता है किसी सरकार के नही। अपने लिए ना सही अपनी आने आने वाली पीढ़ी के लिए तो हम इसकी नीव रख कर जा ही सकते है।
रवि तिवारी
सभी सुख-दुःख,प्यार-घृणा में एक दूसरे का स्पर्श चाहते और करते हैं। माँ का वात्सल्य बच्चे को सीने से स्पर्श में ही प्रकट होता है। हम जब किसी को प्रेम करते हैं तो उसे आलिंगनबद्ध करना चाहते हैं।
जब कोई दोस्त किसी बात से परेशान होता है तो हम उसका हाथ अपने हाथ में लेकर बिना कुछ कहे ही बहुत कुछ कह देते है..रात को जब बच्चा सोता है तो माँ उसके सर पर हाथ फेरती है और बच्चा सुकून से सो जाता है...आप सोच रहे होगे की मैं क्या लिखना चाह रही हूँ......मैं एक ऐसे शब्द के बारे में लिखना चाह रही हूँ जो सोचने में बहुत छोटा लगता है पर ये शब्द बहुत बड़ा...जी हाँ मैं बात कर रही हूँ “स्पर्ष” शब्द के बारे में ...ये शब्द की सुनने में कितना साधारण सा शब्द लगता है....पर है कितना सुकून पहुचने वाला..आप को मुन्ना भाई MBBS फिल्म तो याद होगी उसमें हीरो जो भी व्यक्ति दुखी होता या परेशां होता उसे वो “हग” करता यानि की गले से लगाता और सब को यही करने को कहता..जिसे वो जादू की “झप्पी” कहता....आप ने कभी सोचा है की इस फिल्म के माध्यम से क्या दिखाना और समझाना चाह रहा था....ये स्पर्ष ही है जो इस फिल्म में दिखाया गया था...हम इसे “टचिंग पावर ” भी कह सकते है....इसमे इतनी शक्ति होती है की एक बीमार आदमी को भी ठीक कर सकता है....एक रोते इन्सान को सुकून दे सकता है... स्पर्ष के बहुत से रूप है जैसे माता–पिता का स्पर्ष, पति-पत्नी का स्पर्ष, दोस्त का स्पर्ष, दादा-दादी का स्पर्ष, स्पर्ष चाहे जिस रूप में भी हो सच यही है की स्पर्ष हमेशा ख़ुशी ही देता है....
वर्षा.....