बात दुआ से दवा और अब दारू तक पहुंच ही गई है तो फिर बेवजह हंगामा क्यों.... कुमार संजय
अब सोचना यह है कि जब बुजुर्गों ने ही दुआ के बाद दवा-दारू की परंपरा बनाई है तो हमारी राज्य सरकार भी सही ही कर रही है.. सेंट्रल ने दुआ से दवा तक का काम किया, लेकिन कोरोना पर फतह हासिल नहीं हुई... अब अगर राज्य सरकार ने दारू का सहारा लिया है तो इसमें गलत क्या है... आप नहीं कर पाए इसकी खीज है.. फिर जब केंद्र सरकार राज्यों को मुफ्त दवा और टीके दे नहीं रही तो ऐसे में इन्हें खरीदने के लिए भी खासी रकम चाहिए... वह राजस्व से ही आएगी... और आप चाहते हैं कि राज्य सरकार दवा और टीके सहित जरूरी संसाधन जुटाने के लिए राजस्व भी न जुटा पाए... तो आप राजद्रोही हैं.. जो सरकार की तरक्की से खुश नहीं...
जरा सोचिए... यदि सरकार ने आम जनता की जान बचाने के लिए इतना बड़ा कदम उठाया है तो कुछ सोच समझकर ही उठाया होगा.. आखिर पूरी सरकारी मशीनरी... काबिल नेता.. अफसर... सलाहकर.. सब के सब तो गलत नहीं होंगे...एक आप ही समझदार नहीं हैं.. फिर सरकार बनाने बिगाड़ने के लिए विधायक, सांसद खरीदने तो यह सब कभी किया ही नहीं गया... मामला देश की आम जनता का है... फिल्में टैक्स फ्री हो सकती हैं... कोरोना की दवाएं नहीं... इन्हें तो, सभी टैक्स देकर ही लेना पड़ेगा... तभी तो राजस्व चाहिए.. और उसके लिए शराब (होम डिलेवरी) के साथ बिकवाना बेहद जरूरी और अनिवार्य है... फिर शराब की जगह स्प्रिट, सेनिटाइजर पीकर चार लोग मर भी तो गए...
जरा सोचिए.. दवा और रेमडेसिविर न मिलने से हजारों लोग मरे तो क्या चाहतें हैं.. दवाएं भी न खरीदें... आपातकाल है... इसमें तो लोगों के लिए 35 रुपए का सामान हजारों में भी मंगवाकर देंगे.. देंगे क्या कई दवाएं दस से चार गुना कीमत देकर रि-टेंडर कर मंगवाई हैं...
आप रोक नहीं पाएंगे... यह सरकार है.. जनहित में आवश्यक कदम उठाएगी ही.. और मैं तो कहता हूं कि जिन राज्यों में इनकी सहयोगी सरकारें हैं, उन्हें भी इस तरह से राजस्व जुटाने का मॉडल प्रोजेक्ट तुरंत लागू करना चाहिए... यह बात और है कि हमारे कुछ पड़ोसी राज्य जहां केंद्र सरकार वाली सरकारें हैं वे इसे भले ही लागू न करें... विरोधी हैं तो विरोध करने का हक भी है.
नोट- सच कहने के लिए चाटुकारिता की चासनी कहां मिलती है अगर आपको पता हो मुझे भी बताएं...