अपने ही घर में पराई होती जा रही हमारी भाषा हिंदी
“अंग्रेजी भाषा मैहमान है उसे वही रहने दीजिये, और अपनी भाषा हिंदी को पराया न करे”
भारत में हमेशा ही अतिथि देवो भव: की परम्परा रही है |इसी परम्परा के चलते हमारी पुरे विश्व में एक अलग पहचान है |यूँ तो भारत की बहुत सारी खूबियाँ है पर आज हम हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी के बारे में बात करते है इस विषय को आगे बढने से पहले मैं आप लोगों को थोडा फ़्लैश-बैक में ले जाना चाहती हूँ जैसा की हम सब जानते है करीब २०० सालों तक अंग्रेजों ने हम पर राज किया बाद में काफी प्रयासों के बाद हमें आजादी मिली| अंग्रेज तो चले गये पर अपनी भाषा यहीं छोड़ गये और हम आज भी उतना ही आदर सम्मान इस भाषा का कर रहे है जैसे एक मैहमान का करते है |
आज कल हमारे समाज में जिस व्यक्ति को फराटेदार इंग्लिश आती है उसे बहुत सम्मान की नज़रों से देखा जाता है
जैसे उसने कोई जादुई विद्या सिख ली हो और हम यहीं नहीं रुकते दूसरों को भी उसकी मिसाल देते नहीं थकते |ऐसे लोगों से मैं यहीं कहना चाहूँगीं की उनको अपने बच्चों के विदेशी नाम रखने चाहिए ,तब राम,लक्ष्मण ओम जैसे क्यूँ नाम रखते है ?आज कल जब बच्चा पैदा होता है और जब कुछ दिनों बाद वो टूटी-फूटी भाषा में कुछ बोलता सीखता है तो आज कल के माता-पिता उसे पहले अ,आ,इ ,ई नहीं बल्कि A,B,C,D सिखाते है ,उसे माँ-बाबूजी बोलना नहीं बल्कि मम्मा-पापा सिखाते है क्यूँ ,क्यूँ की आज के समय की यहीं मांग है वो घर में भी ज्यादा से ज्यादा उससे अंग्रेजी में बात करने की कोशिश करते है यहाँ तक की आज कल स्कूलों में एक नया ट्रेंड शुरू हो गया है ।बच्चों के एडमिशन के वक्त माता-पिता का भी इंटरव्यु लिया जाता है जिसमें उन्हें अंग्रेगी आती है या नहीं और भी कई चीजे देखी जाती है उनकी जॉब, फैमिली स्टेटस आदि जिन पालकों को अंग्रेजी नहीं आती उन्हें सीधा-सीधा ये कह दिया जाता है की आपको अंग्रेजी नहीं आती तो आप बच्चों को पढाई में कैसे मदत करेंगें | आज कल जो हिंदी बोलते है उसे हिन दृष्टि से देखा जाने लगा है |जिसका बुरा असर हमारे बच्चों पर पड़ रहा है कई लोग इसी वजह से डिप्रेशन में चले गये है या तो उनको अच्छी नौकरियों से हाथ धोना पड़ रहा है |क्या इन बच्चों में प्रतिभा की कोई कमी है नहीं ।इसकी मुख्य वजह हम ही है,जी हाँ हम हमने ही अपनी भाषा को उसी के घर में अजनबी बना दिया है ।आज यदि कोई शुद्ध हिंदी में कुछ पूछ ले की ट्रेन को हिंदी में क्या कहते है ,या फिर क्रिकेट गेम को हिंदी में क्या कहते है? तो हम ही उसका जवाब नहीं दे पायेंगे |
लोग हिंदी फ़िल्में देखना तो पसंद करते है पर हिंदी बोलने में शर्मिन्दगीं महसूस करते है |
कभी हमने इस बात पर गौर किया है की भारत में हिंदी से ज्यादा अंग्रेजी को जितना महत्व दिया जाता है उतना क्या दुसरे देशों में हिंदी को दिया जाता है जितना प्रयास हम अंग्रेजी बोलने में करते है उतना ही प्रयास दुसरे देश हिंदी सिखने की इक्षा रखते होंगें,इसका जवाब हम सब को पता है नहीं |इससे हमें क्या सीखना चाहिए पहले हमें अपनी राष्ट्रभाषा को ज्यादा महत्व देना चाहिए|हमें बच्चों की हिंदी पर ज्यादा जोर देना चाहिए न की अंग्रेजी पर |मैं ये नहीं कह रही की अंगेजी हमें नहीं सीखनी चाहिए या वो बुरी भाषा है बल्कि अंग्रेजी हमें जरुर सीखनी चाहिए क्यूँ की इसे पुरे विश्व में ज्यादा से ज्यादा बोला जाता है और समझा भी। हमे इसका उपयोग जरूत के वक्त उपयोग करना चाहिए | हमे अपनी राष्ट्रभाषा का उपयोग ज्यादा से ज्यादा करना चाहिए उसे सम्मान देना चाहिए और अपने बच्चों को भी इसका महत्व बताना चाहिए क्यूँ की यहीं आने वाले देश का भविष्य होते है |हमें सरकारी या प्राइवेट कंपनियों में ज्यादा से ज्यादा हिंदी का उपयोग करना चाहिए तभी हम हिंदी को बचा पायेंगें |
आज का परिदृश्य देखने से एसा लगता है की हम धीरे-धीरे अंग्रेजी भाषा के गुलाम होते जा रहे है ये और अपनी भाषा हिंदी को खुद ही मिटाते जा रहे है यदि ऐसी ही स्थिति रही तो हम अपने ही घर में अजनबी बन कर रह जायेंगें ।जैसे अंग्रेजों की गुलामी के वक्त थे फर्क इतना होगा की उस वक्त विदेशी हम पर राज कर रहे थे और इन्सान गुलामी| इस वक्त विदेशी भाषा हम पर राज कर रही है और हमारी मानसिकता उसकी गुलामी | ✍वर्षा