एकता अखंडता के पुरोधा थे आदि शंकराचार्य : इंदुभवानंद
खबरीलाल रिपोर्ट :: जगद्गुरु शंकराचार्य आश्रम वे स्थित भगवती राजराजेश्वरी मंदिर में भगवान आदि शंकराचार्य के 2525 तम जयंती बड़े भक्ति मय परिवेश में मनाया गया। आज के विशेष दिन के विशेष पूजन में आचार्य धर्मेंद्र, एमएल पांडेय, एलपी वर्मा, कुसुम सिंघानिया, नरसिंह चंद्राकर, ज्योति नायर, सोनू चंद्राकर, श्रीकृष्ण तिवारी, भूपेंद्र पांडेय, गौतम मिश्रा, पुरोहित राम कुमार शर्मा, एसएस सिंह व आदि भक्तगण सम्मिलित हुए तथा आश्रम प्रमुख ब्रह्मचारी डॉ इंदुभवानंद के सान्निध्य में पूजा अर्चना, आरती कर प्रसाद ग्रहण किये। इस विशेष अवसर पर ब्रह्मचारी डॉ इंदुभवानंद ने उपस्थित श्रद्धालुओं से कहा कि भगवान आदि शंकराचार्य ने विधर्मियों को हटाकर धार्मिक स्वतंत्रता दिलवाई तथा सनातन धर्म को अक्षुण्य बनाए रखने के लिए भारत के चारों दिशाओं में चार मठों की स्थापना की जिससे एक दूसरे मठ में जाकर परस्पर लोग क्षेत्रीय बात को भुलाकर भारत की अखंडता को अक्षुण्य बनाये रखने में अपना योगदान देंगे। मठ परंपरा भगवान आदि शंकराचार्य का ही देन है और इसी कारण हम मठ में पूजा कर सकते हैं जो पहले नहीं था। शंकराचार्य आश्रम रायपुर के प्रवक्ता रिद्धीपद ने उपस्थित भक्तों से आग्रह किया कि आगामी 22 अप्रैल भगवती राजराजेश्वरी का पाटोत्सव आश्रम में मनाया जाएगा तथा भगवती का अर्चन 1008 आम, किसमिस आदि फलों से कर पुष्पांजलि तथा महाआरती ब्रह्मचारी डॉ इंदुभवानंद महाराज के सान्निध्य में सम्पन्न होगा एवं हवन पश्चात महा भंडारे का आयोजन भी किया जाएगा। रिद्धीपद ने आगे बताया 21 अप्रैल की शाम 5 बजे भगवती राजराजेश्वरी की विशाल शोभायात्रा निकलेगी तथा भगवती राजराजेश्वरी बोरियाकला में शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती द्वारा स्थापित मा शीतला से मिलने जाएंगी जिसका स्वागत बोरियाकला के सभी ग्राम पंचायत व गांव के लोग स्वागत कर भगवती राजराजेश्वरी का पूजन करेंगे।