गौवंश संवर्द्धन के प्रति लोगों का रुझान उत्पन्न होगा हमारी प्राचीन संस्कृति पुनः आगे बढ़ेगी
स्याम सुरभि पय विसद अति गुनद करहिं सब पान
यदि गौ माता काली हो तो भी उसका दूध हमेशा उज्जवल और गुणकारी ही होता है
सनातन संस्कृति को यदि हम गौ संस्कृति कहें तो इसमें कोई भी अतिशयोक्ति की बात नहीं होगी कारण कि प्रत्येक सनातन धर्मावलंबियों का कोई न कोई गोत्र होता है गोत्र शब्द की उत्पत्ति ऋग्वैदिक काल में गोष्ट शब्द से हुई है अर्थात वह स्थान जहां गायों को ठहराया जाने लगा और लोग समूहों में निवास करने लगे यह बातें श्री दूधाधारी मठ पीठाधीश्वर राजेश्री डॉक्टर महन्त रामसुन्दर दास महाराज ने प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से अभिव्यक्त की उन्होंने छत्तीसगढ़ सरकार के द्वारा गोबर खरीदने के निर्णय को अभूतपूर्व एवं ऐतिहासिक निर्णय निरूपित करते हुए कहा कि यह मनुष्य के तर्क एवं कल्पना के परे है कि किसी सरकार के द्वारा गोबर को क्रय किये जाने का निर्णय लिया गया हो, शायद विश्व के इतिहास में छत्तीसगढ़ की सरकार प्रथम सरकार होगी जिसने शासकीय तौर पर गोबर खरीदने का निर्णय लिया है।
उन्होंने कहा कि हमारी तो प्राचीन संस्कृति ही गौ माता की सेवा से ओतप्रोत है मानव सभ्यता के विकास का प्रारंभ ही गौ सेवा से हुआ है ऋग्वैदिक कालीन भारत मे कृषि युग के प्रारंभ होने के पूर्व लोग समूह बनाकर अलग-अलग स्थानों पर गौपालन का कार्य करने लगे वह जिस स्थान पर ठहरते थे उस स्थान को गोष्ट कहा जाता था कालांतर में गोष्ट से ही गोत्र की उत्पत्ति हुई और सनातन संस्कृति धीरे-धीरे करके ऋषि मुनियों के माध्यम से आगे बढ़ती चली गई बाद के वर्षों में मानव ने अपनी सभ्यता के विकास को आगे बढ़ाते हुए कृषि करना प्रारंभ किया और तब से लेकर हमने आज के इस आधुनिक युग तक का सफर पूरा किया है लेकिन हमारे विकास के प्रत्येक सोपान में, प्रत्येक युग में गौ पालन का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। यहां तक कि जब संसार में अधर्म बढ़ गया, पृथ्वी संसार के पाप को धारण नहीं कर पायी वह परमात्मा से ब्रह्मा, शिव आदि देवताओं के साथ मिलने गई तब भी उसने गौमाता का ही स्वरूप धारण किया।
परमात्मा के पृथ्वी पर अवतार धारण करने का एक प्रमुख कारण गौ माता की रक्षा करना ही है, गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज ने लिखा है- विप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार। छत्तीसगढ़ शासन के मुखिया भूपेश बघेल जी ने जिस तरह से गोबर की खरीदी करने का निर्णय लिया है वह निश्चित ही अभूतपूर्व एवं ऐतिहासिक है इस तरह के निर्णय की कल्पना भी किसी ने नहीं की थी। संसार में वही बुद्धिमान है, वही विद्वान है जो किसी भी वस्तु का समाज हित में उपयोग करना जानता हो रामचरितमानस में लिखा है बुद्धिमान लोग स्याही जैसे कालिख पदार्थ से भी वेद पुराण लिख लिया करते हैं। गोबर खरीदने का महत्व इसलिए भी है कि सरकार के इस कार्य से एक पारिस्थितिक तंत्र का निर्माण होगा, लोगों के लिए रोजगार का सृजन होगा जो वर्तमान परिस्थिति में समाज की सबसे बड़ी आवश्यकता है।
प्राचीन भारतीय समाज कृषि कार्य के लिए गोबर के खाद बनाने की विधि से भलीभांति परिचित था जब से रसायनिक उर्वरक ने कृषि कार्य में अपना स्थान बनाया है तब से इसकी महत्ता कुछ कम हो गई थी जिसके कारण खाद्य पदार्थों के पौष्टिक गुणवत्ता में काफी कमी आई, एक समय वह भी था जब किसी किसान के खेत में दुबराज का धान लग जाता था तब उसकी महक, उसकी खुशबू पूरे खार में फैल जाती थी, रसायनिक उर्वरकों के आने से यह सब बंद हो चुकी है लेकिन छत्तीसगढ़ सरकार के प्रयास से हम पुनः अपने परंपरागत कृषि की ओर आगे बढ़ेंगे यह निर्णय भावों से भरा हुआ है, यह उन लोगों के लिए एक सबक है जो स्वदेशी का नारा लगाकर थक गए याद रखिए केवल नारा लगाने से कोई कार्य नहीं होगा बल्कि उसे हमें अपने कर्मों के द्वारा समाज के समक्ष प्रस्तुत करना होगा- जो भरा नहीं है भावों से, बहती जिसमें रसधार नहीं। वह हृदय नहीं है पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं। यदि हमें अपने देश, अपनी मातृभूमि से प्यार करना है तो अपनी संस्कृति को अपनाना ही पड़ेगा। गाय छोटी हो, बड़ी हो, लाल, सफेद, काली चाहे जैसी भी हो उसके गुण समान ही होते हैं रामचरितमानस में लिखा है स्याम सुरभि पय बिसद अति गुनद करहिं सब पान। अर्थात यदि गौ माता काली भी हो तो भी उसका दूध उज्जवल और गुणकारी ही होता है इसलिए सब लोग उसका पान करते हैं!
वेदों में तो गौ माता को समस्त चराचर जगत् को व्याप्त करने वाली जननी के रूप में उद्धृत किया गया है- यया सर्व मिदं व्याप्तं जगत् स्थावरजंग्डमम, तां धेनुं शिरसा वन्दे भूत भब्यषस्य मातरम्। छत्तीसगढ़ सरकार की इस योजना की जितनी भी तारीफ की जाए वह कम है यह भारतीय संस्कृति एवं सनातन धर्म के अनुकूल है। मीडिया प्रभारी निर्मल दास वैष्णव ने इस संदर्भ में बताया कि राजेश्री महन्त जी महाराज स्वयं श्री दूधाधारी मठ एवं उससे संबंधित मठ मंदिरों के द्वारा 18 से अधिक गौशाला संचालित करते हैं जहां प्रत्येक गौशाला में पांच सौ से लेकर दो हजार तक गायें हैं जिसमें शासन से वे किसी भी तरह का कोई अनुदान नहीं लेते केवल गौ संवर्धन के साथ गौ सेवा ही मठ मंदिर का मूल उद्देश्य है वे गौपालन के विशिष्ट अनुभव से भली-भांति अवगत हैं।