देखा, सिसक रही थी काशी। नंगे पाँव चला सन्यासी :: अविमुक्तेश्वरानंद
:: सुदीप्तो चटर्जी "खबरीलाल" रिपोर्ट ::
देखा, सिसक रही थी काशी।
नंगे पाँव चला सन्यासी ।।
काल अनादि रही संरक्षित,
शिव का मयआनंद अलौकिक,
घर-घर कंकर-शंकर पूजित,
अब क्यूँ सिसकी भरती काशी,
नंगे पाँव चला सन्यासी।।
“मैंने तो गंगा से मिलकर,
अविमुक्त ये क्षेत्र बनाया।
अपने अंचल में ले, जलकर,
तेरे पुरखे मुक्त कराया।
मैंने बाबा शिव को, हठ कर,
कैलाश से यहाँ बुलवाया।
तेरे मन को शांति मिले,
सारे देवों को यहाँ बसाया।
मेरे अंग भंग कर अब क्या,
मुझे बनायेगा क्योटो-सी”
देखा, सिसक रही थी काशी।
नंगे पाँव चला सन्यासी ।।
...स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद
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