"बस इतना साथ देना तुम"- महिला दिवस विशेष
जब कभी मैं गिर जाऊँ तो मुझे सहारा मत देना, मेरे खुले पंखो को यूँ ही छोड़ देना, अपेक्षाओं की बाण से ज़ख़्मी ना कर देना तुम, दूर खड़े रहना मेरा हौसला बड़ा देना तुम।।।एक बस इतना साथ देना तुम....
वो जो ममता के आँचल में छुपाया था तुमको, जिसकी छांव में लोरी गाकर सुलाया था तुमको, मेरे संस्कार को नीचा ना दिखाना तुम, हारकर मौत को गले ना लगाना तुम।।।एक बस इतना साथ देना तुम...
मेरी सूरत नहीं सीरत देखो, मेरी ना को सिर्फ़ ना देखो, प्रेमिका हूँ इश्क़ की कसक देखो, तेज़ाब डालकर या बलात्कार कर अपने पुरुषार्थ को ना खोना तुम।। एक बस इतना साथ देना तुम....
है राखी की क़सम तुमको, वो रोली की सौगंध तुमको,है बहन का आशीर्वाद तुमको, किसी का दिल ना तोड़ना तुम।।।एक बस इतना साथ देना तुम..
साथी बनकर साथ निभाऊँगी तुम्हारा, टूट कर चाहूँगी, रखूँगी सदा मान तुम्हारा।।।ऊँची आवाज़, लहराते हाथ, अभद्र शब्दों में अपने वजूद को ना खोना तुम।।। एक बस इतना साथ देना तुम....
लक्ष्मी रूप में आऊँगी, सरस्वती रूप में बढ़ती जाऊँगी, तुम जनक की तरह विदा करना मैं सीता की तरह देहरी छोड़ चली जाऊँगी, पर कोख में ही ना मसलना तुम।।। एक बस इतना साथ देना तुम.....
...कामायनी...
Leave a comment